Wednesday, 12 February 2020

यह खनक कैसी हुयी ?

मैं जिन्दगी मैं दौड़ता जा रहा था
यह खनक कैसी हुयी ?
कुछ गिरा क्या ? ...देखता हूँ ...उठाता हूँ ...
अरे यह आत्मा मेरी गिरी है मुझसे निकल कर
कहती है मुझे आना ही होगा फिर कभी ...आऊँगी भी
नए कपडे पहन कर
तेरा सफ़र रुकता है अब ...मेरा सफ़र जारी हुआ
जिन्दगी की शाम का वक्तव्य है यह ...रात बाकी है
सुबह फिर अर्ध्य देना है तुम्हें उगते हुए सूरज को
और उस उगते हुए सूरज मैं शुभकामना भी शामिल हैं
मेरी भी ...तुम्हारी भी .
" ------ राजीव चतुर्वेदी

जब लोकतांत्रिक समुद्र -मंथन होता है.

"जब लोकतांत्रिक समुद्र -मंथन होता है तो सुर भी निकलता है , सुंदरियां भी , शौर्य भी , विष भी ,अमृत भी . सवाल यह है कि जन -गण -मन किसका चयन करता है ? सवाल यह है कि सदैव सुविधा की घात में बैठे देवता कौन हैं ? राहू -केतु कौन हैं ? कौन हैं हमारे घावों पर मरहम लगाने वाला महरबान धन्वन्तरी ? कौन है अप्सरा ? अमृत पर कौन है घात में, किसके हाथ में है सुरा ? हम सही पहचान कर सकें ...धोखा न खाएं . हर युग में एक शिव होता है जो समाज के फैले विष को पीता है पर सुकरात की तरह मरता नहीं , जीता है .---- हम उस शिव को पहचान सकें . --- शुभ कामना !!"