"जब लोकतांत्रिक समुद्र -मंथन होता है तो सुर भी निकलता है , सुंदरियां भी , शौर्य भी , विष भी ,अमृत भी . सवाल यह है कि जन -गण -मन किसका चयन करता है ? सवाल यह है कि सदैव सुविधा की घात में बैठे देवता कौन हैं ? राहू -केतु कौन हैं ? कौन हैं हमारे घावों पर मरहम लगाने वाला महरबान धन्वन्तरी ? कौन है अप्सरा ? अमृत पर कौन है घात में, किसके हाथ में है सुरा ? हम सही पहचान कर सकें ...धोखा न खाएं . हर युग में एक शिव होता है जो समाज के फैले विष को पीता है पर सुकरात की तरह मरता नहीं , जीता है .---- हम उस शिव को पहचान सकें . --- शुभ कामना !!"
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