Thursday, 12 December 2013

अकबर इलाहाबादी

1.
हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है

उस मय से नहीं मतलब दिल जिससे हो बेगाना
मकसूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है

सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हमको कहें काफ़िर अल्लाह की मरज़ी है

ना तजुर्बाकारी से वाइज़ की ये बातें है
इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है

हर ज़र्रा चमकता है अनवर-ए-इलाही से
हर सांस ये कहती है हम है तो खुदा भी है..

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