1.
"जिंदगी को सजा नहीं पाया
बोझ इसका उठा नहीं पाया
खूब चश्मे बदल के देख लिए
तीरगी को हटा नहीं पाया
प्यार का मैं सबूत क्या देता
चीर कर दिल दिखा नहीं पाया
जो थका ही नही सज़ा देते
वो खता क्यों बता नहीं पाया
वो जो बिखरा है तिनके की सूरत
बोझ अपना उठा नहीं पाया
आईने में खुदा को देखा जब
ख़ुद से उसको जुदा नहीं पाया
नाम "जगदीश" है कहा उसने
और कुछ भी बता नहीं पाया-"---जगदेश रावतानी आनन्दम
2.
दिल अगर फूल सा नहीं होता
यूँ किसी ने छला नहीं होता
था ये बेहतर कि कत्ल कर देती
रोते रोते मरा नहीं होता
दिल में रहते है दिलरुबाओं के
आशिकों का पता नहीं होता
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं तब तक
इश्क जब तक हुआ नहीं होता
पाप की गठरी हो गई भारी
वरना इतना थका नहीं होता
होश में रह के ज़िन्दगी जीता
तो यूँ रुसवा हुआ नही होता
जुर्म हालात करवा देते है
आदमी तो बुरा नहीं होता
ख़ुद से उल्फत जो कर नहीं सकता
वो किसी का सगा नहीं होता
क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
आदमी ग़र गिरा नहीं होता .
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