जान हम तुझ पे दिया करते हैं
नाम तेरा ही लिया करते हैं
चाक करने क लिए ऐ नासेह
हम गरेबान सिया करते हैं
साग़र-ए-चश्म से हम बादा-परस्त
मय-ए-दीदार पिया करते हैं
ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं
संग-ए-असवद भी है भारी पत्थर
लोग जो चूम लिया करते हैं
कल न देगा कोई मिट्टी भी उन्हें
आज ज़र जो कि दिया करते हैं
ख़त से ये माह हैं महबूब-ए-क़ुलूब
सब्ज़े को मोहर गिया करते हैं
दफ़्न महबूब जहाँ हैं ‘नासिख़’
क़ब्रें हम चूम लिया करते हैं-
2.
सब हमारे लिए ज़ंजीर लिए फिरते हैं
हम सर-ए-जुल्फ़-ए-गिरह-गीर लिए फिरते हैं
कौन था सैद-ए-वफ़ादार कि अब तक सय्याद
बाल-ओ-पर उस के तिरे तीर लिए फिरते हैं
तू जो आए तो शब-ए-तार नहीं याँ हर सू
मिशअलें नाला-ए-शब-गीर लिए फिरते हैं
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं
जो है मरता है भला किस को अदावत होगी
आप क्यूँ हाथ में शमशीर लिए फिरते हैं
सरकशी शम्अ की लगती नहीं गर उन को बुरी
लोग क्यूँ बज़्म में गुल-गीर लिए फिरते हैं
तो गुनहगारी में हम को कोई मतऊँ न करे
हाथ में नामा-ए-तक़दीर लिए फिरते हैं
क़स्र-ए-तन को यूँ ही बनवा न बगूले ‘नासिख़’
ख़ूब ही नक़्शा-ए-तामीर लिए फिरते हैं
नाम तेरा ही लिया करते हैं
चाक करने क लिए ऐ नासेह
हम गरेबान सिया करते हैं
साग़र-ए-चश्म से हम बादा-परस्त
मय-ए-दीदार पिया करते हैं
ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं
संग-ए-असवद भी है भारी पत्थर
लोग जो चूम लिया करते हैं
कल न देगा कोई मिट्टी भी उन्हें
आज ज़र जो कि दिया करते हैं
ख़त से ये माह हैं महबूब-ए-क़ुलूब
सब्ज़े को मोहर गिया करते हैं
दफ़्न महबूब जहाँ हैं ‘नासिख़’
क़ब्रें हम चूम लिया करते हैं-
2.
सब हमारे लिए ज़ंजीर लिए फिरते हैं
हम सर-ए-जुल्फ़-ए-गिरह-गीर लिए फिरते हैं
कौन था सैद-ए-वफ़ादार कि अब तक सय्याद
बाल-ओ-पर उस के तिरे तीर लिए फिरते हैं
तू जो आए तो शब-ए-तार नहीं याँ हर सू
मिशअलें नाला-ए-शब-गीर लिए फिरते हैं
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं
जो है मरता है भला किस को अदावत होगी
आप क्यूँ हाथ में शमशीर लिए फिरते हैं
सरकशी शम्अ की लगती नहीं गर उन को बुरी
लोग क्यूँ बज़्म में गुल-गीर लिए फिरते हैं
तो गुनहगारी में हम को कोई मतऊँ न करे
हाथ में नामा-ए-तक़दीर लिए फिरते हैं
क़स्र-ए-तन को यूँ ही बनवा न बगूले ‘नासिख़’
ख़ूब ही नक़्शा-ए-तामीर लिए फिरते हैं
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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