1.
उसने बेकार ये बहरूप बनाया हुआ है,
हमने जादू का एक आईना लगाया हुआ है।
उसने बेकार ये बहरूप बनाया हुआ है,
हमने जादू का एक आईना लगाया हुआ है।
दो जगह रहते है हम, एक तो यह शहर-ए-मलाल,
एक वो शहर जो खवाबों में बसाया हुआ है।
एक वो शहर जो खवाबों में बसाया हुआ है।
रात और इतनी मुसल्सल! किसी दीवाने ने,
सुबह रोकी हुई है, चाँद चुराया हुआ है।
सुबह रोकी हुई है, चाँद चुराया हुआ है।
इश्क़ से भी किसी दिन मा'रका फैसल हो जाए,
उसने मुद्द्त से बहुत हश्र उठाया हुआ है।
उसने मुद्द्त से बहुत हश्र उठाया हुआ है।
लग्ज़िशें कौन सम्भाले कि मुहब्ब्त में यहाँ,
हमने पहले ही बहुत बोझ उठाया हुआ है।
2.
होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है ,
रंज कम सहता है एलान बहुत करता है |
रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग ,
कम से कम रात का नुकसान बहुत करता है |
आज कल अपना सफर तय नहीं करता कोई,
हाँ सफर का सर-ओ-सामान बहुत करता है |
अब ज़बाँ खंज़र-ए-कातिल की सना करती है,
हम वो ही करते है जो खल्त-ए-खुदा करती है |
हूँ का आलम है गिराफ्तारों की आबादी में,
हम तो सुनते थे की ज़ंज़ीर सदा करती है |
रंज कम सहता है एलान बहुत करता है |
रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग ,
कम से कम रात का नुकसान बहुत करता है |
आज कल अपना सफर तय नहीं करता कोई,
हाँ सफर का सर-ओ-सामान बहुत करता है |
अब ज़बाँ खंज़र-ए-कातिल की सना करती है,
हम वो ही करते है जो खल्त-ए-खुदा करती है |
हूँ का आलम है गिराफ्तारों की आबादी में,
हम तो सुनते थे की ज़ंज़ीर सदा करती है |
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