Wednesday, 16 April 2014

मोहसिन नकवी .

1.
जब तेरी धुन में जिया करते थे


" जब तेरी धुन में जिया करते थे
हम भी चुप चाप फिरा करते थे

आँख में प्यास हुवा करती थी
दिल में तूफ़ान उठा करते थे

लोग आते थे ग़ज़ल सुनने को
हम तेरी बात किया करते थे

सच समझते थे तेरे वादों को
रात दिन घर में रहा करते थे

किसी वीराने में तुझसे मिलकर
दिल में क्या फूल खिला करते थे

घर की दीवार सजाने के लिए
हम तेरा नाम लिखा करते थे

वोह भी क्या दिन थे भुला कर तुझको
हम तुझे याद किया करते थे

जब तेरे दर्द में दिल दुखता था
हम तेरे हक में दुआ करते थे

बुझने लगता जो चेहरा तेरा
दाग सीने में जला करते थे

अपने जज्बों की कमंदों से तुझे
हम भी तस्खीर किया करते थे

अपने आंसू भी सितारों की तरह
तेरे होंटों पे सजा करते थे

छेड़ता था गम-ए-दुनिया जब भी
हम तेरे गम से गिला करते थे

कल तुझे देख के याद आया है
हम सुख्नूर भी हुआ करते थे "


2.
बिछड़ने से मुहब्बत तो नहीं मरती
 उसे कहना बिछड़ने से मुहब्बत तो नहीं मरती
बिछड़ जाना मुहब्बत की सदाकत की अलामत है

मुहब्बत एक फितरत है, हाँ फितरत कब बदलती है
सो, जब हम दूर हो जाएं, नए रिश्तों में खो जाएं

तो यह मत सोच लेना तुम, के मुहब्बत मर गई होगी
नहीं ऐसे नहीं होगा ..

मेरे बारे में गर तुम्हारी आंखें भर आयें
छलक कर एक भी आंसू पलक पे जो उतर आये

तो बस इतना समझ लेना,
जो मेरे नाम से इतनी तेरे दिल को अकीदत है

तेरे दिल में बिछड़ कर भी अभी मेरी मुहब्बत है 
मुहब्बत तो बिछड़ कर भी सदा आबाद रहती है

मुहब्बत हो किसी से तो हमेशा याद रहती है
मुहब्बत वक़्त के बे-रहम तूफ़ान से नहीं डरती


3.
 उसने जब जब भी मुझे दिल से पुकारा मोहसिन

उसने जब जब भी मुझे दिल से पुकारा मोहसिन
मैंने तब तब यह बताया के तुम्हारा मोहसिन

लोग सदियों की खताओं पे भी खुश बसते हैं
हमको लम्हों की वफाओं ने उजाड़ा मोहसिन

जब आगया हो ये यकीन अब वोह नहीं आयेगा
गम और आंसू ने दिया दिल को सहारा मोहसिन

वोह था जब पास तो जीने को भी दिल करता था
अब तो पल भर भी नहीं होता गुज़ारा मोहसिन

उसको पाना तो मुक़द्दर की लकीरों में नहीं
उसका खोना भी करें कैसा गवारा मोहसिन"


4.
 वफ़ा में अब यह हुनर इख्तियार करना है 

" वफ़ा में अब यह हुनर इख्तियार करना है 
वोह सच कहे न कहे ऐतबार करना है 

यह तुझ को जागते रहने का शौक कब से हुआ?
मुझे तो खैर तेरा इंतजार करना है

हवा की ज़द में जलाने हैं आंसूं के चिराग
कभी ये जशन सर ए-राह-गुज़र करना है

वोह मुस्कुरा के नए वास-वासों में ढल गया
ख़याल था के उसे शरमसार करना है

मिसाल-ए-शाख-ए बढ़ाना खिजान की रुत में कभी
खुद अपने जिसम को बे बर्ग ओ बार करना है

तेरे फ़िराक में दिन किस तरह कटें अपने
कि शुगल-ए-शब् तो सितारे शुमार करना है

चलो ये अश्क ही मोती समझ के बेच आये
किसी तरह तो हमें रोज़गार करना है

कभी तो दिल में छुपे ज़ख़्म भी नुमायाँ हों
काबा समझ के बदन तार तार करना है

खुदा जाने ये कोई जिद, के शौक है मोहसिन
खुद अपनी जान के दुश्मन से प्यार करना है "

1 comment:

  1. बेहतरीन पेशकश ... वाह
    ये आपके लिये..
    उसके सब झूठ भी सच हैँ 'मोहसिन'
    शर्त इतनी है कि बोले तो सही. !!

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