Tuesday, 8 April 2014

जॉन एलिया

1.
आगे असबे खूनी चादर और खूनी परचम निकले 
जैसे निकला अपना जनाज़ा ऐसे जनाज़े कम निकले 


दौर अपनी खुश-दर्दी रात बहुत ही याद आया
अब जो किताबे शौक निकाली सारे वरक बरहम निकले 

है ज़राज़ी इस किस्से की, इस किस्से को खतम करो 
क्या तुम निकले अपने घर से, अपने घर से हम निकले 

मेरे कातिल, मेरे मसिहा, मेरी तरहा लासनी है
हाथो मे तो खंजर चमके, जेबों से मरहम निकले 

'जॉन' शहादतजादा हूँ मैं और खूनी दिल निकला हूँ
मेरा जूनू उसके कूचे से कैसे बेमातम निकले !!

2.
महक उठा है आँगन इस ख़बर से
वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से 

जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम
दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे 

मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था 
उतारे कौन अब दीवार पर से 

गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की 
मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से 

उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद
हमारी चाँदनी छाए तो तरसे 

मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान 
कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से

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