Thursday 29 January 2015

इब्ने इंशा

३.
देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियां
हम से है तेरा दर्द का नाता, देख हमें मत भूल मियां

अहल-ए-वफ़ा से बात न करना होगा तेरा उसूल मियां
हम क्यों छोड़ें इन गलियों के फेरों का मामूल मियां

ये तो कहो कभी इश्क़ किया है, जग में हुए हो रुसवा भी
इस के सिवा हम कुछ भी न पूछें, बाक़ी बात फ़िज़ूल मियां

अब तो हमें मंज़ूर है ये भी, शहर से निकलें रुसवा हों
तुझ को देखा, बातें कर लीं, मेहनत हुई वसूल मियां

इंशा जी क्या उज्र है तुमको, नक़्द-ए-दिल-ओ-जां नज़्र करो
रूपनगर के नाके पर ये लगता है महसूल मियां



2.
फ़र्ज़ करो हम अहले वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूठी हों अफ़साने हों

फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता, जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी, आधी हमने छुपाई हो

फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के ढूंढे हमने बहाने हों
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सचमुच के मयख़ाने हों

फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूठा, झूठी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में सांस भी हम पर भारी हो

फ़र्ज़ करो ये जोग बिजोग का हमने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो


1.
दिल-सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच 
इंशा जी क्या माल लिए बैठे हो तुम बाज़ार के बीच
पीना-पिलाना ऎन गुनाह है, जी का लगाना ऎन हविस
आप की बातें सब सच्ची हैं लेकिन भरी बहार के बीच
ऎ सखियो ऎ ख़ुशनज़रों इक गुना करम ख़ैरात करो
नाराज़नां कुछ लोग फिरें हैं सुबह से शहरे-निगार के बीच
ख़ारो-ख़सो-ख़ाशाक तो जानें, एक तुझी को ख़बर न मिले
ऎ गुले ख़ूबी हम तो अबस बदनाम हुए गुलज़ार के बीच
मिन्नते क़ासिद कौन उठाए,शिक्वए-दरबां कौन करे
नामए-शौक़ ग़ज़ल की सूरत छपने को दो अख़बार के बीच

सख़ियो=दानियो; नाराज़नां=नारा लगाने वाले; शहरे-निगार=प्रेमिका का नगर; ख़ारो-ख़सो-ख़ाशाक=कांटा, घास का तिनका,कूड़ा-करकट; अबस=व्यर्थ; नामए-शौक=अपने शौक का लिखित रूप; सूरत=तरह