Wednesday 12 February 2020

यह खनक कैसी हुयी ?

मैं जिन्दगी मैं दौड़ता जा रहा था
यह खनक कैसी हुयी ?
कुछ गिरा क्या ? ...देखता हूँ ...उठाता हूँ ...
अरे यह आत्मा मेरी गिरी है मुझसे निकल कर
कहती है मुझे आना ही होगा फिर कभी ...आऊँगी भी
नए कपडे पहन कर
तेरा सफ़र रुकता है अब ...मेरा सफ़र जारी हुआ
जिन्दगी की शाम का वक्तव्य है यह ...रात बाकी है
सुबह फिर अर्ध्य देना है तुम्हें उगते हुए सूरज को
और उस उगते हुए सूरज मैं शुभकामना भी शामिल हैं
मेरी भी ...तुम्हारी भी .
" ------ राजीव चतुर्वेदी

जब लोकतांत्रिक समुद्र -मंथन होता है.

"जब लोकतांत्रिक समुद्र -मंथन होता है तो सुर भी निकलता है , सुंदरियां भी , शौर्य भी , विष भी ,अमृत भी . सवाल यह है कि जन -गण -मन किसका चयन करता है ? सवाल यह है कि सदैव सुविधा की घात में बैठे देवता कौन हैं ? राहू -केतु कौन हैं ? कौन हैं हमारे घावों पर मरहम लगाने वाला महरबान धन्वन्तरी ? कौन है अप्सरा ? अमृत पर कौन है घात में, किसके हाथ में है सुरा ? हम सही पहचान कर सकें ...धोखा न खाएं . हर युग में एक शिव होता है जो समाज के फैले विष को पीता है पर सुकरात की तरह मरता नहीं , जीता है .---- हम उस शिव को पहचान सकें . --- शुभ कामना !!"

Monday 1 February 2016

हम भी जिम्मेदार हैं हर किसान की आत्म हत्या के






" चुप ...बिलकुल चुप पाखंडियो ...!!
किसानों की आत्म हत्या पर घडियाली आँसू बहा कर अपने सिवा सभी को कोसते पाखंडियो ...अगर गेंहूं 25/- रुपये किलो हो जाए तो हम में से कितने लोग हैं जो खुश होंगे ?
दवा मंहगी , दारू मंहगी , बिजली मंहगी ,डीज़ल मंहगा ...एक एक कर सारे औद्योगिक उत्पाद मंहगे ...कारें मंहगी , शिक्षा मंहगी , चिकित्सा मंहगी ...पर जैसे ही कृषि उत्पाद मंहगे होते हैं चिल्लाने लगते हो ?...क्या किसान 
को अपने बेटे को पढ़ाना नहीं है ? ...क्या किसान को इलाज नहीं करवाना है ? ...फिर उसके उत्पाद न मंहगे हों बाकी सभी के उत्पाद मंहगे हों ;---क्यों ? ...क्योंकि यह द्वंद्व है खाने वाले और खिलाने वाले का ...हम सस्ता खाना चाहते हैं और किसान को उसके उत्पादन का तर्क संगत मुनाफा तो दूर उत्पादन लागत भी नहीं देना चाहते ...परिणाम कि आज कृषि अलाभकारी व्यवसाय है ...खेतों में फसल की जगह प्लौट उगने लगे हैं .
कल्पना करिए कि आपके यहाँ बेटे का रिश्ता ले कर कोई आया है ...आप स्वाभाविक जिज्ञाषा से पूछते हैं -- "श्री मान आप क्या करते हैं ?" उत्तर मिलता है कि शराब का काम करते हैं तो आपके मन में उसका दबदबा कायम हो जाता है और अगर वह कहे कि-- " दूध बेचते हैं " तो आपकी नज़र में वह गिर जाता है .--- यह है आपका चरित्र . परिणाम शराब मंहगी और दूध सस्ता है फिर भी शराब की दुकानों पर भीड़ है और दूध की दुकानों पर सन्नाटा है ...फलों के जूस की दूकानें ध्वस्त करते मुनिस्पेलिटी के लोग आपने देखे होंगे पर क्या कभी शराब की दूकान ध्वस्त करते किसी सरकारी अमले को देखा है ?...अगर शराब 200/ रुपये लिटर लाइंन लगा कर बिक रही है तो दूध 250/- लिटर क्यों नहीं ?...फलों का जूस 300/- लिटर क्यों नहीं ? ...करके देखो पूंजी का प्रवाह शहर से गाँव की तरफ हो जाएगा . पर तुम पाखंडी हो किसानों के लिए सिंथेटिक आंसू बहाने वाले सुविधाजीवी शहरी हो कृषि उत्पादन का मंहगा होना किसानो को लाभ देगा ...कृषि को लाभकारी बनाएगा ...गाँव का पलायन शहरों की और रुक जाएगा फिर तुमको शहरों में सस्ते मजदूर /नौकर / कर्मचारी नहीं मिलेंगे ...इण्डिया को भारतीय गुलामों की जरूरत है ....रोशनी ,रास्ते ,राशन और रोजगार पर शहरों का कब्ज़ा है ...ट्यूब लाइटें शिर्फ़ शहरों में ही जगमगाती हैं और असली ग्रामीण भारत में अभी अँधेरा है .
आपको टीवी के, वाशिंग मशीन के, कार के, यात्रा के, शिक्षा के, चिकित्सा के, मंहगा होने पर कोई खास बेचैनी नहीं होती किन्तु कृषि उत्पाद के मंहगा होते ही बहुत बेचैनी होती है क्योंकि आप खुद किसान को फलते फूलते नहीं देखना चाहते ....सातवें वेतन आयोग के लिए उत्सुक लोगो आप नहीं चाहते की कृषि लाभकारी हो ...आप नहीं चाहते कि कृषि उत्पाद मंहगे हों ...वर्तमान मूल्य पर कृषि अलाभकारी है ...घाटे की है ...अगर वास्तव में चाहते हो कि किसान आत्महत्या न करे तो आवाज़ दो ...गेंहूं मंहगा हो ...आलू मंहगा हो ...अनाज /सब्जी मंहगी हों ...दूध मंहगा हो ...घी /मक्खन मंहगा हो ...सभी कृषि उत्पाद मंहगे हों ...क्या हम इतने ईमानदार हैं कि कृषि उत्पादों को मंहगा करने का राष्ट्रव्यापी आन्दोलन छेड़ेंगे ? ...नहीं न तो फिर हम भी जिम्मेदार हैं हर किसान की आत्म हत्या के ."
 ---- राजीव चतुर्वेदी



"फसल ...
खडी होने तक हर हरामखोर फासले पर रहता है
और अपने बच्चों से भी फसल से फासला रखने को कहता है
फसल की प्यास छीन कर वह स्वीमिंगपूल में पानी भरता है
फसल में शामिल है किसान की उदासी
फसल में शामिल है नहर की खंती
फसल में शामिल है सूरज की किरण और उसमें पकता हुआ किसान
फसल में शामिल है नीलगाय से जूझता किसान
फसल में शामिल है किसान का वह पसीना
जिसको क्या समझेगी कोई हरामखोर हसीना
फसल में शामिल है पाताल का पानी और थोड़ी ओस
फसल में शामिल है आढ़तिये की मक्कारी और किसान का जोश
कुछ हवा ...थोड़ी चांदनी ...सहेज के रखा गया किसान की बेटी का दहेज़
फसल में शामिल है किसान के बच्चे के मटमैले से सपने
फसल में शामिल हैं किसान के कुछ अपने
फसल में शामिल है टाट -पट्टी के स्कूल की भी न चुकाई गयी फीस
फसल में शामिल है गाय का रम्भाना ...बैल का मर जाना
...ट्रेक्टर की कमर तोडती किश्त
यों समझ लो कि फसल में पूरी सृष्टि और थोड़ी वृष्टि शामिल है
फसल में शामिल है पूरी की पूरी कायनात
फसल में नहीं शामिल हैं कोई अर्जुन ...कोई नागार्जुन ...हम और आप
हम शामिल हो जायेगे तो यह साहित्यिक लफ्फाजी कौन करेगा ?
फसल ...
खडी होने तक हर हरामखोर फासले पर रहता है
और अपने बच्चों से भी फसल से फासला रखने को कहता है . 
" 
---- राजीव चतुर्वेदी

Tuesday 12 January 2016

" क्या तुम कृष्ण को जानते हो ?"

क्या तुम कृष्ण को जानते हो ?


----- // 1- कृष्ण क्या है ? // ---
"कृष्ण उस प्यार की समग्र परिभाषा है जिसमें मोह भी शामिल है ...नेह भी शामिल है ,स्नेह भी शामिल है और देह भी शामिल है ...कृष्ण का अर्थ है कर्षण यानी खीचना यानी आकर्षण और मोह तथा सम्मोहन का मोहन भी तो कृष्ण है ...वह प्रवृति से प्यार करता है ...वह प्राकृत से प्यार करता है ...गाय से ..पहाड़ से ..मोर से ...नदियों के छोर से प्यार करता है ...वह भौतिक चीजो से प्यार नहीं करता ...वह जननी (देवकी ) को छोड़ता है ...जमीन छोड़ता है ...जरूरत छोड़ता है ...जागीर छोड़ता है ...जिन्दगी छोड़ता है ...पर भावना के पटल पर उसकी अटलता देखिये --- वह माँ यशोदा को नहीं छोड़ता ...देवकी को विपत्ति में नहीं छोड़ता ...सुदामा को गरीबी में नहीं छोड़ता ...युद्ध में अर्जुन को नहीं छोड़ता ...वह शर्तों के परे सत्य के साथ खडा हो जाता है टूटे रथ का पहिया उठाये आख़िरी और पहले हथियार की तरह ...उसके प्यार में मोह है ,स्नेह है,संकल्प है, साधना है, आराधना है, उपासना है पर वासना नहीं है . वह अपनी प्रेमिका को आराध्य मानता है और इसी लिए "राध्य" (अपभ्रंश में हम राधा कहते हैं ) कह कर पुकारता है ...उसके प्यार में सत्य है सत्यभामा का ...उसके प्यार में संगीत है ...उसके प्यार में प्रीति है ...उसके प्यार में देह दहलीज पर टिकी हुई वासना नहीं है ...प्यार उपासना है वासना नहीं ...उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और वासना देह की भौतिक अनुभूति इसी लिए वासना वैश्यावृत्ति है . जो इस बात को समझते हैं उनके लिए वेलेंटाइन डे के क्या माने ? अपनी माँ से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपने मित्र से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी बहन से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी प्रेमिका से प्यार करो कृष्ण की तरह ... .प्यार उपासना है वासना नहीं ...उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और वासना देह की भौतिक अनुभूति ." ----राजीव चतुर्वेदी

----- // 2- कृष्ण और पर्यावरण // ---
" आज कृष्ण का प्रतिपादित पर्यावरण दिवस है ...दीपावली के बाद हम गोवर्धन पूजा भी करते हैं . गो (गाय ) + वर्धन (बढाना ) यानी गऊ वंश को बढाने का संकल्प दिवस . ...आज गो वंश को बढ़ाना तो दूर जगह जगह आधुनिक कट्टीखाने खुल गए हैं ...दूध डेरी के उत्पादकों से अधिक कमाई चमड़े के व्यवसाई और कसाई कर रहे हैं ...आज पहाड़ों , जंगल और जंगल पर आधारित मानव सभ्यता के मंगल का दिवस है ...आज के दिन ही पर्यावरण की ...वन सम्पदा की ...नदियों की , जंगल की , पशु पक्षियों की रक्षा का संकल्प कभी द्वापर में जननायक कृष्ण ने लिया था . ...जननायक का संकल्प नालायक के हाथ में जब पड़ता है तो पर्यावरण का वही हाल होता है जो आज है . आज हम पहाड़ों की , प्रकृति की , सम्पूर्ण पर्यावरण की रक्षा और उसके संवर्धन का संकल्प लेते हैं ...औषधीय उत्पाद को घर पर ला कर उनके व्यंजन बनाते हैं ...गाय के वंश को बढाने का संकल्प लेते हैं ." ----- राजीव चतुर्वेदी

----- // 3- कृष्ण और महिला मुक्ति // ---
" !! यह काम न तो कोई NGO कर सका है ...न एमनेस्टी इंटरनेश्नल ...न राष्ट्र ...न संयुक्त राष्ट्र ...न कोई ईसाई मिशनरी ...न प्रशासन की कमिश्नरी ...और जन्नत में हूर के लिए धरती पर लंगूर बने लोगों के मजहब से तो उम्मीद ही क्या की जाए ? भगवान् कृष्ण ने नरकासुर का वध करके उसके शोषण से 16000 महिलाओं को मुक्त कराया था। नरकासुर का राज्य वर्तमान भारत के पूर्वोत्तर राज्यों (असाम /सिक्किम /मेघालय मणिपुर ) में था। यह हमला करके महिलाओं को उठा लेजाता था। कृष्ण महिला समानता और स्वतंत्रता के पक्षधर थे। जब उनको नरकासुर की करतूतों का पता चला तो उन्होंने लगभग कमांडो की शैली में कार्यवाही करते हुए नरकासुर का वध किया था। किन्तु न भूलें अभी नरकासुर के और भी छोटे, बड़े, मझोले संस्करण समाज में मौजूद हैं। अभी भी नरकासुर के क्षेत्र से विश्व की सब से ज्यादा बाल वेश्याएं आ रही हैं। अभी भी वहां देह व्यापार के सबसे बड़े अड्डे हैं। अभी भी भारतीय समाज में दहेज़खोर हैं ...अभी भी महिलाओं को मुकम्मल मुक्ति नहीं मिली है। क्या आज के दिन हम भगवान् कृष्ण से कोइ प्रेरणा लेंगे ? नरकासुर केनाम से ही इस दिन को नरक चतुर्दसी कहते हैं। नारी शोषण की मानसिकता का आज वध हुआ था अतः आज हम मनाते हैं महिला मुक्ति दिवस !! "---राजीव चतुर्वेदी

----- // 4- कृष्ण -- भूगोल और खगोल // ---
"कृष्ण की महारास लीला ...शरद ऋतु का प्रारम्भ होते ही प्रकृति परमेश्वर के साथ नृत्य कर उठाती है एक निर्धारित लय और ताल से ...त्रेता यानी राम के युग की मर्यादा रीति और परम्पराओं में द्वापर में परिमार्जन होता है ...स्त्री उपेक्षा से बाहर निकलती है ...द्वापर में कृष्ण सामाजिक क्रान्ति करते हैं फलस्वरूप स्त्री -पुरुष के समान्तर कंधे से कन्धा मिला कर खड़ी हो जाती है ...स्त्री पुरुष के बीच शोषण के नहीं आकर्षण के रिश्ते शुरू होते है ..."कृष" का अर्थ है खींचना कर्षण का आकर्षणजनित अपनी और खिंचाव ...द्वापर में जिस नायक पर सामाजिक शक्तियों का ध्रुवीकरण होता है ...जो व्यक्ति कभी सयास और कभी अनायास स्त्री और पुरुषों को अपनी और खींचता है ...सामाजिक शक्तियों का कर्षण करता है कृष्ण कहलाता है ....शरद पूर्णिमा पर खगोल के नक्षत्र नाच उठते हैं ...राशियाँ नाच उठती है और राशियों के इस लयात्मक परिवर्तन को ...राशियों के इस नृत्य को "रास " कहते हैं ...खगोल में राशियों का नृत्य अनायास यानी "रास" और भूगोल में इन राशियों के प्रभाव से प्रकृति का आकर्षण और परमेश्वर का अतिक्रमण वह संकर संक्रमण है जो सृजन करता है ...दुर्गाष्टमी के विसृजन के बाद पुनः नवनिर्माण नव सृजन का संयोग . कृष्ण स्त्री -पुरुष संबंधों को शोषणविहीन सहज सामान और भोग के स्तर पर भी सम यानी सम्भोग (सम +भोग ) मानते थे ...जब खगोल में राशियाँ नृत्य करती हैं और रास होता है ...जब भूगोल में प्रकृति परमेश्वर से मिलने को उद्यत होती है ...जब फूल खिल उठते हैं ...जब तितलियाँ नज़र आने लगती हैं ...जब रात से सुबह तक समीर शरीर को छू कर सिहरन पैदा करता है ...जब युवाओं की तरुणाई अंगड़ाई लेती है तब कृष्ण का समाज भी आह्लाद में नृत्य कर उठता है ...खगोल में राशियों के रास यानी कक्षा में नृत्य के साथ भूगोल भी नृत्य करता है और उस भूगोल की त्वरा को आत्मसात करने की आकांक्षा लिए समाज भी नृत्य करता है ...खगोल में राशियों के नृत्य को रास कहते हैं ...राशियाँ नृत्य करती हैं धरती नृत्य करती है ...अपने अक्ष पर घूमती भी है ...चंद्रमा , शुक्र ,मंगल , बुध शनि ,बृहस्पति आदि राशियाँ घूमती हैं , नृत्य करती हैं ...धरती घूमती है और नाचती भी ...खगोल और भूगोल नृत्य करता है ...और उससे प्रभावित प्रकृति भी ...खगोल ,भूगोल और भूगोल पर प्रकृति नृत्य करती है राशियों की त्वरा (फ्रिक्येंसी ) पर नृत यानी रास करती है ...सभी राशियों के अपने अपने ध्रुव हैं ...ध्रुवीकरण हैं ...भौगोलिक ही नहीं सामाजिक ध्रुवीकरण भी हैं ...द्वापर में यह ध्रुवीकरण जिस नायक पर होता है उसे कृष्ण कहते हैं ...और खगोल से भूगोल तक राशियों से प्रभावित लोग कृष्ण को केंद्र मान कर रास करते हैं ." ------- राजीव चतुर्वेदी

----- // 5 - कृष्ण और गीता // ---
----- // श्री मद्-भगवत गीता के बारे में सत्य और तथ्य // ----

"प्रश्न - किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।


प्रश्न --कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।


प्रश्न --भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।


प्रश्न --कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी


प्रश्न --कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।


प्रश्न --कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में


प्रश्न --क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।


प्रश्न -- कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय .


प्रश्न -- कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक


प्रश्न --गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।


प्रश्न --गीता को अर्जुन के अलावा और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने .


प्रश्न --अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को.


प्रश्न -- गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में .


प्रश्न --गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति- पर्व का एक हिस्सा है।


प्रश्न --गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद .


प्रश्न -- गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण ने- 574, अर्जुन ने- 85, धृतराष्ट्र ने- 1 तथा संजय ने- 40.
 " ------ राजीव चतुर्वेदी

.....

शोकगीत में उगी हुई यह कविता तुम्हें कैसी लगी ?

"हमेशा की तरह इस बार भी त्यौहार पर मुझे लोग पूछेंगे
बता देना --वह अब यहाँ नहीं रहता
दर -ओ -दीवार में भी नहीं
दिल -ओ -दिमाग में भी नहीं
यहाँ तो मर गया था वह
जनाजा जिम्मेदारी से वह खुद ही ले गया अपना, जरूरत के लिफ़ाफ़े में
वह किश्तों में मर रहा है फिर भी ज़िंदा है 
हमारे लिए तो वह मर चुका है
तुम्हारे लिए ज़िंदा हो तो तलाश लो
ज़िंदा होगा कहीं अपने वीराने में
वह मर तो गया था बहुत पहले
पर सुना है सांस लेता है अभी
लोगों का मन रखने को हंसता भी है
प्यार के अभिवादन में मुस्कुराता भी है
वह मिजाज से रंगीन नहीं ग़मगीन सा था
वह कभी भी दीपावली पर पटाके नहीं चलाता था
उसे शोर नहीं पसंद ...संगीत पर भी वह नहीं थिरकता
दैहिक सुन्दरता उसे मुग्ध नहीं करती
दार्शनिक सुन्दरता वह समझता है
मरा हुआ आदमी शांत होता है न
पर संवेदना से वह सहम सा जाता है
शायद इसीलिए लोग उसे ज़िंदा मानते हैं ...औरों से ज्यादा ज़िंदा
उसके वीराने में कोई दस्तक दे ...यह उसे पसंद नहीं था पहले
उसकी मौजूदगी ऐसी थी जैसे शवयात्रा में कोई खिलखिला कर हंस पड़े
पर वह मर चुका है
उसके मरने की खबर सुन कर कुछ लोग खुश हैं 
वह मर कर भी उनको खुशी दे गया
जो दुखी हैं वह इसलिए कि अब वह और खुशी नहीं दे सकेगा
वह अन्दर से तिलमिलाता
और बाहर से खिलखिलाता
अपनी शवयात्रा में शामिल है
सुना है वह बहुत साहसी है ...मरने से नहीं डरता
मर चुका आदमी भला मरने से डरेगा भी क्यों ?
मैंने उसे छोड़ दिया तो कौन सी बड़ी बात है
शरीर को आत्मा भी तो छोड़ देती है एक रोज
वह डूब रहा है अपने ही सन्नाटे में
बाहर के सन्नाटे से शोकाकुल है वह
वह अजीब है
डूबता हुआ आदमी, तैरता है तुम्हारी यादों में
जैसे लाश तैरती हो नदी में
जैसे आस तैरती हो सदी में
शोकगीत में उगी हुई यह कविता तुम्हें कैसी लगी ?
मरने के पहले वह बहुत कुछ जानना चाहता था, ...यह भी."
 ---- राजीव चतुर्वेदी 

राजीव चतुर्वेदी ( 3)

गुरुओं को कृतज्ञभाव से प्रणाम !! ...पर मत भूलो समाज में गुरुघंटाल भी हैं

" !! गुरु पूर्णिमा पर गुरुओं को कृतज्ञभाव से प्रणाम !! ...पर मत भूलो समाज में गुरुघंटाल भी हैं ...शिक्षा के दलाल भी हैं ...गुरुओं को युगों से आदर दे रहे इस देश में शिक्षा और कोचिंग क्लास की दुकाने खुल गयी हैं जहां न जाने कितने प्रतिभासंपन्न किन्तु गरीब एकलव्यों के अंगूठे कटे हुए टंगे हैं --- देखो तो ! ...गुरु पूर्णिमा पर गुरु दक्षिणा का व्यापक कार्यक्रम चलाने वाले सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रणेता और अभिनेता अपनी सक्रियता के बीच इस सवाल का जवाब भी दे दें कि शिक्षा के बाजारीकरण के लिए अटल सरकार ने दरवाजे क्यों खोले थे ? ...अटल सरकार में क्यों शिक्षा के बाजारीकरण के लिए "अनिल अम्बानी -कुमारमंगलम बिरला समिति" का गठन किया था ? ...सभी जानते हैं की अनिल अम्बानी या कुमार मंगलम बिरला का शिक्षा से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है पर व्यापार की दूरदृष्टि या यों कहें कि गिद्ध दृष्टि तो है ..."सामान शिक्षा" का नारा आज़ादी के बुजुर्ग हो जाने के बाद भी मुंह बाए खड़ा है ...ग्रामीण स्कूलों और शहर के अभिजात्य स्कूलों में शिक्षा के स्तर के बीच असमानता की गहरी खाई है ...ऐसे में शिक्षा का मानकीकरण संभव ही नहीं है . भारत में हर युग में गुरुओं को बहुत सम्मान दिया गया ...क्या गुरूजी की जवाबदेही कोई नहीं ?...भारत के कोनो में ज्ञान /शिक्षा का अन्धकार क्यों है ? ...क्यों आज़ादी के इतने साल बाद भी मिशनरी स्कूल हमारे स्कूलों पर गुणवत्ता में भारी हैं ? ... गुरु पूर्णिमा पर आपको गुरु की सिद्ध दृष्टि मिले, गिद्ध दृष्टि न मिले .--- शुभकामना !" ----- राजीव चतुर्वेदी 

"इल्म बड़ी दौलत है
तू भी स्कूल खोल
इल्म पढ़ा
फीस लगा
दौलत कमा
फीस ही फीस
पढाई के बीस
बस के तीस
यूनिफार्म के चालीस
खेलो के अलग
वैरायटी प्रोग्राम के अलग
पिकनिक के अलग
लोगो के चीखने पर ना जा
दौलत कमा
उससे और स्कूल खोल
उनसे और दौलत कमा
कमाए जा, कमाए जा
अभी तो तू जवान ह..यह सिलसिला जारी है
जब तक गंगा-जमाना है
पढाई बड़ी अच्छी है
पढ़
बही खता पढ़
टेलीफोन डायरेक्टरी पढ़
बैंक अस्सेस्मेंट पढ़
ज़रूरते-रिश्तो के इश्तिहार पढ़
और कुछ मत पढ़
मीर और ग़ालिब को मत पढ़
इक़बाल और फैज़ को मत पढ़
इब्ने इंशा को मत पढ़
वर्ना तेरा बेडा पर न होगा
और हम में से कोई
नताएज़ * का ज़िम्मेदार न होगा।
"
- इब्ने इंशा
( पाकिस्तान के मशहूर लेखक और व्यंगकार )
*नताएज़ = नतीजे का बहुवचन / परिणाम


दीनदयाल उपाध्याय और भाजपा की यात्रा कथा



(आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयन्ती है ...वह राजनीति के दार्शनिक संत थे ..."एकात्म मानववाद " के प्रणेता थे चुनावी नेता नहीं ...उनका जन्म मथुरा में फराह के पास नगला चंद्रभान में हुआ था . 1968 में रहस्यमय परिस्थितियों में वह मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर रेल के डिब्बे में मृत मिले थे ...विडंबना यह कि उनकी हत्या का मुकदमा जौनपुर के तत्कालीन जनसंघ के सांसद राजा यादवेंद्र दत्त मिश्रा पर चला था ....गाँधी की हत्या को मौन और मुखर समर्थन देने वाली शक्तियों ने ही दीनदयाल उपाध्याय की हत्या करवा दी थी ) 

" भाजपा की स्थापना 6 अप्रेल 1980 को एक राजनीतिक विवशता में हुयी थी . यह संक्रमणग्रस्त भारतीय जनसंघ का ही नया संस्करण था . भारतीय जनसंघ का चुनाव चिन्ह था दीपक और नारा था --
हर हाथ को काम , हर खेत को पानी ,
घर घर में दीपक , जनसंघ की निशानी .
"


श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय के तत्कालीन नेतृत्व में पार्टी के विचार विकसित हुए किन्तु वोट विकसित नहीं हुए ...बलराज मधोक ने प्रखर राष्ट्रवाद का परचम लहराया . उस दौर में लड़ाई कोंग्रेस को केन्द्रीय सत्ता से प्रतिस्थापित करने की नहीं थी . उस दौर में लड़ाई केवल अपने आपको प्रखर विपक्ष सिद्ध करने की थी और इस प्रतियोगिता में राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव के सोसलिस्ट अंतर्द्वंद्व संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी (संसोपा ) और प्रजा सोसलिस्ट पार्टी (प्रसोपा ) के रूप में थे वही अपने विरोध को विभाजित करने के लिए कोंग्रेस ने वामपंथियों को प्रायोजित कर दिया था (बिलकुल वैसे ही जैसे इस बार केजरीवाल की "आप" को . 1968 में कोंग्रेस के गर्भ से चौधरी चरण सिंह का उदय हुआ और राजनीती के लाल केशरिया झंडों में हरी झंडियाँ भी दिखने लगीं ...कोंग्रेस ने भी कुटिलता से स्वेत क्रान्ति का नारा दिया ...किन्तु विपक्ष विभाजित था. अब तक श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय की हत्या हो चुकी थी ... शेष बचे शीर्ष नेता बलराज मधोक को अटल बिहारी वाजपेयी हाशिये पर धकेल चुके थे (बिलकुल वैसे ही जैसे नरेंद्र मोदी ने अडवानी को धकेला ) अटल जी शीर्ष नेता थे और उनके लेफ्टीनेंट /सचिव थे लालकृष्ण अडवानी जो उस समय पार्टी मुखपत्र पांचजन्य / ओर्गनाइज़र के सम्पादक भी थे . साथ में राजस्थान से भैरों सिंह शेखावत और संघ परम्परा के नानाजी देशमुख भी बड़े सेनापतियों में थे .इनके नेतृत्व में करपात्री जी की अगुआई में "गो वध बंदी आन्दोलन " उभरा . आन्दोलन जितना सशक्त था उतनी ही सख्ती से इसे इंद्रा गाँधी ने कुचला भी ...दिल्ली में इसके प्रदर्शन में कुछ सौ लोग दिल्ली में पुलिस की गोली से मारे गए थे और इंद्रा गांधी की छवि हिन्दू विरोधी की हो गयी किन्तु 1971 में बांग्लादेश युद्ध के बाद भाजपा के हाथ से उसका राष्ट्रवाद का मुद्दा छिन कर कोंग्रेस या यों कहें की इंद्रा जी के हाथ में चला गया था . इस लोकप्रियता की ऊंचाई पर पंहुच कर कोंग्रेस आत्ममुग्ध हो गयी और दोनों हाथ से लूट होने लगी ...भ्रष्टाचार के नए सोपान लिखे गए . इसके विरुद्ध भारतीय जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने जबरदस्त काम किया ...उधर संसद में अटल बिहारी बाजपेयी विपक्ष की प्रखर आवाज़ बन कर उभरे तो जनसंघ के अनुसांगिक संगठन विद्यार्थी परिषद् ने पूरे देश के छात्रों में संगठन खड़े कर लिए अब संगठन के हिसाब से कोंग्रेस के बाद सबसे बड़ी ताकत जनसंघ हो चूका था ...1974 में गुजरात छात्र आन्दोलन से गुजरात की सरकार पलट गयी . यह आन्दोलन विद्यार्थी परिषद् का था जिसमें नरेंद्र मोदी आगे थे ...उधर बिहार में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में जेपी मूवमेंट कोंग्रेस की केन्द्रीय सरकार को उखड फेंकने के लिए चल पड़ा था . जेपी मूवमेंट में विद्यार्थी परिषद् की अग्रणी हिस्सेदारी थी जिसमें गोविन्दाचार्य प्रमुख थे और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष अरुण जेटली भी अग्रणी थे . 1975 में सोशलिस्ट नेता राजनारायण की चुनाव याचिका में इंद्रा गांधी हार गयीं किन्तु अपना पद बचाने के लिए उन्होंने 25 जून '75 को देश में आपातकाल लागू कर दिया ....सभी विपक्षी नेता जेल में थे जिनमें जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर्वाधिक नेता थे . 1977 में लोकसभा चुनाव में कोंग्रेस या यों कहें की इंद्रा गांधी के विरुद्ध अभूतपूर्व ध्रुवीकरण हुआ और तमाम विपक्षी दल अपना विलय कर जनता पार्टी बने . जनता पार्टी का सबसे बड़ा घटक भारतीय जनसंघ था . 1977 में जनता पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली ...चंद्रशेखर जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री . मोरारजी देसाई की इस सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे और लाल कृष्ण अडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री थे . किन्तु अंतरविरोधों के कारण यह सरकार डगमगा गयी और चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने ...प्रयोग असफल हो चुका था ...जनता पार्टी फिर आपने अपने धडों में बाँट गयी ...जनता पार्टी के भारतीय जनसंघ घटक ने पुनः नयी पार्टी का पंजीकरण कराया और अब 6 अप्रेल'1980 से इसका परिवर्तित नया नाम हुआ " भारतीय जनता पार्टी " और चुनाव चिन्ह मिला "कमल" ....और इसके बाद का घटना चक्र तात्कालिक इतिहास है और इतिहास साक्षी है कि भाजपा ने अभी तक किसी आन्दोलन को अंजाम तक नहीं पंहुचाया है ...सांकेतिक किया और सरकार बना कर चुप बैठ गए ...सांकेतिक कार सेवा ...सांकेतिक राष्ट्रवाद ....अभी तक तो यह राजनीती के अथक किन्तु कत्थक नृत्य ही कर रहे हैं ...अब अंजाम तक 
पंहुचना होगा . " ----- राजीव चतुर्वेदी



अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा क़त्ल से खुश होता है तो उसके मुंह पर थू

"मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणी भी ईश्वरीय कृति हैं ... बल्कि अवधारणा तो यही है कि मानव ईश्वरीय कृतियों में अंतिम कृति है ... यह सनातन अवधारणा है , इस्लाम की भी है, ईसाइयों की भी ,बौद्धों की भी ,यहूदियों की भी ,पारसीयों की भी (मार्क्सवादी मजहब को मानने वाले ही इस अवधारणा से असहमत हैं ) ... फिर ईश्वर की एक कृति को दूसरी कृति नष्ट करे यह अधिकार कहाँ से मिल गया ? ...ईश्वर /ईसा /अल्लाह तो नहीं दे सकते ? ...भला कौन पिता अपनी कमजोर संतति को मारने का हक़ अपनी ताकतवर संतति को देगा ? ... निश्चय ही पशु बलि / कुर्बानी ताकतवर संतति मानव के द्वारा अपने अधिकार के विस्तार ही नहीं पशुओं के प्रकृति पर हक़ पर अतिक्रमण की कहानी है ... पहले राजा नरबलि देते थे फिर हम कुछ और सभ्य हुए तो कानूनन इस पर रोक लगी ...आश्चर्य इस बात पर है कि ईश्वर /अल्लाह /ईसा केवल शाकाहारी सीधे अहिंसक जानवरों की बलि पर ही खुश होते हैं ? ... अरे भाई अपने पालतू या सड़क के फालतू कुत्ते की बलि या कुर्बानी क्यों नहीं करते ? ...शेर से ले कर सांप तक किसी हिंसक प्राणी की कुर्बानी क्यों नहीं करते ? ... शाकाहारी प्राणीयों का गोस्त ही क्यों खाते हो ? 
मानव ने मजहब बनाए और अलग अलग भयावह रूपों में यमराज की कल्पना कर ली पर पशुओं की भी तो सुनो ...नेपाल के काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर के इलाके के भैंसे / बकरे बताते होंगे यमराज त्रिपुण्ड लगाता है ...कामाख्या मंदिर- गौहाटी के इलाके के बकरे /भैंसे बताते होंगे कि यमदूत तिलक लगाता है और इसी तरह बकरीद पर गाय /भैंस /ऊँट /भेड़ /बकरे आपस में बताते होंगे कि यमराज गोलटोपी पहन कर आता है और मजहब से मुसलमान होता है ...कुल मिला कर यमदूत की शक्ल में साम्प्रदायिक आरक्षण है . बहरहाल जितना गोश्त बकरीद पर खाया जाता है उतना गोश्त होली पर भी खाया जाता है .
क़त्ल तो क़त्ल है फिर चाहे मानव का हो या पशु का ...क़त्ल को हर हाल में केवल आत्म रक्षा के लिए ही जायज ठहराया जा सकता है ...मानव पर संसद थी ..विधान सभा थी ...एक जुट करती भाषा थी तो पहले अपनी बलि प्रतिबंधित करने के क़ानून बनाए फिर ताकतवर मानव इकाइयों ने कमजोर मानव इकाइयों का शोषण किया प्रकृति के शोषण किया फिर अपना पोषण करने वाले जल जंगल जमीन का शोषण किया ...फिर अब बारी शाकाहारी प्राणियों की थी तो उनकी बलि /कुर्बानी होने लगी . 
ईश्वर /अल्लाह /ईसा अगर है तो कभी अपनी ही निर्दोष कृति के क़त्ल पर खुश नहीं हो सकता ...और अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा निर्दोषों के क़त्ल पर खुश होता है तो मैं उसकी निंदा करता हूँ ...मेरा ईश्वर कातिलों के साथ नहीं खड़ा हो सकता ...मेरा ईश्वर क़त्ल से खुश नहीं हो सकता ...और अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा क़त्ल से खुश होता है तो उसके मुंह पर थू ." ----- राजीव चतुर्वेदी

राजीव चतुर्वेदी ( क्रांति ही क्रांति )

भारत बोल रहा है ...पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा


"भारत बोल रहा है ...
भारत आज़ादी से अब तक बोल रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा . रोशनी, रास्ते, राशन और रोजगार पर इण्डिया का कब्ज़ा है और ग्रामीण भारत असहाय अँधेरे में चीख रहा है ...ग्रामीण भारत में अँधेरा है और शहरी इण्डिया सोडियम लाईट में सुनहरा दिख रहा है . भारत बोल रहा है ...चीख रहा है ...कराह रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ...भारत हिन्दी /तमिल /तेलगू /मलयालयी /असमिया /बांग्ला / गुजराती /उड़िया /मणिपुरी में बोल रहा है और इण्डिया अंगरेजी में सुन रहा है ...भारत का जन -गण-मन 
अपनी भाषाओं में न्याय की गुहार करता है तो इण्डिया के वकील उसे अंगरेजी में लिखते , इण्डिया के जज उसे अंगरेजी में समझते और फैसला देते हैं ...भारत में न्याय की भाषा इण्डिया की अंगरेजी है ... भारत में अर्थ शास्त्र /बजट की भाषा इण्डिया की अंगरेजी है ...भारत के जन -गण-मन से वोट माँगा जाता है देसी भाषाओं में और फिर इंडिया राज्य चलाता है अंगरेजी भाषा में ... भारत के बच्चे गाँव देहात के सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं और इंडिया के बच्चे अभिजात्य अंगरेजी स्कूलों में ...भारत बोल रहा है कि सामान शिक्षा दो पर इण्डिया की चुप्पी है ...भारत के लोग सरकारी अस्पताल में इलाज करवाते हैं और इण्डिया के लोग नर्सिंग होम में ...भारत के लोग सेना में भारती होते है और पाकिस्तान से युद्ध लड़ते हैं और इण्डिया के लोग IPL से जुड़ते हैं और भारत -पाकिस्तान क्रिकेट का मजा लेते हैं ... भारत बोल रहा है कि बेरोजगारी बड़ी समस्या है ...जन चिकित्सा स्तरहीन है ...न्याय सस्ता और समय पर उपलब्ध नहीं है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ...इण्डिया की संसद में गत 67 सालों में बेरोजगारी पर अब तक कुल मिला कर 2 घंटे 48 मिनट ही बहस हुयी है , जन चिकित्सा पर 18 घंटे , सामान शिक्षा पर 3 घंटे 16 मिनट और सस्ते सुलभ न्याय पर 16 घंटे 24 मिनट ही चर्चा हुयी है ( श्रोत -- लोकसभा अध्यक्ष पी ए संगमा की रिपोर्ट रिवाइज्ड )...बहरहाल भारत आज़ादी से अब तक बोल रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ." ----- राजीव चतुर्वेदी


मैकॉले को कोसने से कुछ नहीं होगा ...आत्मवंचना कीजिये

" मैकॉले को कोसने से कुछ नहीं होगा ...आत्मवंचना कीजिये ...गुजरे 1000 सालों में हिन्दू राजाओं ने या मुग़ल बादशाहों ने अपनी प्रजा के लिए किया ही क्या था ? ...हिन्दू राजाओं /मुग़ल बादशाहों ने कभी अपने लिए या अपनी प्रजा के लिए कोई लिपिबद्ध आचार संहिता बनायी ? -- नहीं . कोई शिक्षानीति बनायी ? -- नहीं . कोई सर्व शिक्षा अभियान चलाया ? --- नहीं . कोई जनस्वास्थ्य की बात की ? -- नहीं .कभी किसी देश की कल्पना की ? -- नहीं . कभी राष्ट्र की कल्पना की ? -- नहीं ? अपने राज्य के लिए कभी कोई संविधान बनाया ? -- नहीं ....केवल असमर्थों पर अत्याचार करते रहे ...लूटते रहे ...लडकियाँ उठाते रहे ...लुटेरों की तरह लूटते रहे ....डकैत गिरोहों की तरह लूटते रहे ...भारी पड़े तो लूट लिया , दूसरों की जर/जोरू /जमीन पर कब्ज़ा कर लिया और कोई भारी पड़ा तो भाग लिए ...अपनी सत्ता को स्थाइत्व देने के लिए जनता को कुछ राहत तो देनी पड़ती है ...हिन्दू राजाओं की चरित्रहीनता से ऊबी जनता को मुग़ल बादशाहों ने थोड़ी राहत दे कर लूटा ...क्या बात थी कि कर्मवती को पूरे भारत में कोई भाई चरित्र नहीं दिखा और हुमायूं भारत में राखी के बहाने आ डटा ? ...मुगलों ने भारत में भरपूर अत्याचार किये पर आम जनता को कुछ नागरिक सुविधाएं भी दीं ...न्याय के लिए नियमित अदालतों की व्यवस्था हुयी ...वकील,मुंसिफ ,मुद्दई ,मुलजिम ,जिरह,बहस ,जमानत , गिरफ्तार , फैसला आदि सारे उर्दू के शब्द हैं . इनका एक भी प्रचलित हिन्दी /संस्कृत/ बंगाली / कन्नड़ /तमिल /तेलगू /उड़िया में शब्द नहीं है . चूंकि मुगलों के पहले व्यवस्था ही नहीं थी तो शब्द कहाँ से होता ? ...सोशियल पुलिसिंग चालू हुयी कोतवाल , दरोगा , हवलदार ,दीवान ,मुन्सी ,बयान और पुलिसिया रोज नामचों में दर्ज होने वाले तमाम तकनीकी शब्द उर्दू के हैं , अरबी के हैं पर भारतीय भाषाओं के नहीं .-- क्यों ? ...क्योंकि नागरिकों को पुलिस व्यवस्था देने के लिए भारतीय मूल के राजाओं ने सोचा ही नहीं . मुगलों ने सड़कें बनवाईं , पुल बनवाये ...अदालतें बनवाईं ...जन स्वास्थ्य के लिए सफाखाने (अस्पताल ) बनवाये ...भारतीय जनता खुश हुयी होगी ...एक लुटेरे को खदेड़ कर दूसरा लुटेरा आया था पर वह उसे ही तो लूट रहा था जिस पर कुछ था ...लुटी पिटी जनता को अब कुछ जन सुविधाएं भी थी ... जन विश्वास खो चुके और पूर्ण शोषक हो चुके क्षत्रीय राजाओं की मूंछें और उनके मंत्री पण्डित जी की शिखा और यज्ञोपवीत मुगलों ने बेरहमी से नोच ली थी ...अब लुटेरे बन कर आये मुगलों ने लूट कर भागने के बजाय यहीं पैर जमा लिए ...सत्ता जमाते हुए उन्होंने सरकार को स्वरुप दिया ...न्यायव्यवस्था कायम हुयी ...स्वास्थ सेवायें शुरू हुईं ...पुलिस अस्थ्त्व में आयी ...परिवहन के लिए सड़कें बनीं ...जमीनों के नक़्शे बने ...राज्य चलाने के लिए राजस्व वसूली की व्यवस्था हुयी ...जमींदारी व्यवस्था ने पैर जमाये ...मुगलों ने भारतीय मूल के राजाओं का सैनिक बन कर लड़ने वाले गरीब कुचले हुए विपन्न लोगों को पहली बार नागरिक सुविधाएं दीं . इससे मुगलों के विरुद्ध भारतीय मूल के राजाओं को सैनिक मिलना बंद हो गए ...अब संपन्न की हिफाजत विपन्न ने करना बंद कर दी थी ...क्षत्रीय राजाओं की शान और उनके पुरोहित बने पण्डितजीयों का ज्ञान मुगलों का गुलाम बन चुका था ....फिर पैर स्थाई जमते ही मुग़ल लुटेरे बादशाह बन बैठे और उन्होंने भी क्रूरता से शोषण जारी किया तो अंग्रेज आये . अंग्रेजों ने व्यापार का कल्याणकारी मुखौटा लगाया और वार किया ...अंग्रेज सत्ता की स्थापना के बाद अंग्रेजों ने भारतीय मूल के शेष या यों कहें कि अवशेष राजाओं की मूंछें , पंडितों की मुगलों से शेष बची शिखा तो उखाड़ ही ली साथ ही मुग़ल बादशाहों की और उनके साथी मुल्लों की दाढ़ी भी उखाड़ ली ...ठाकुर साहब की मूंछें , पंडितों की शिखा और मुगलों की दाढी अब अंग्रेजों के दरबार में कालीन बन कर बिछी थी ...पददलित ...भारतीय मूल के या मुग़ल राजाओं ने स्कूल नहीं खोले थे ...दूर दराज के आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनरी स्कूल खोले गए ... झाबुआ, बस्तर, जगदलपुर जैसी जगह अंगरेजी स्कूल और अस्पताल खुलने लगे ...गरीबों के बच्चे साक्षर हो रहे थे माध्यम वर्ग के बच्चे समझदार और उच्च वर्ग के बच्चे शिक्षित ...न्याय और प्रशासन की भाषा अंगरेजी हो चली ...सड़कें बनी ...आज के न्यायालयों /विधान सभाओं /संसद /विश्वविद्यालयों की इमारतें अंग्रेजों की बनवाई हैं ...रेलवे अंग्रेजों की बनवाई है ....हम तो अंग्रेजों की बनायी व्यवस्था पर अंग्रेजों को खदेड़ कर बस बैठ गए हैं ...न हमने व्यवस्था बनायी है न क़ानून ...लगभग 2800 केन्द्रीय कानूनों ( Central Act ) में 2635 अंग्रेजों के बनाए हुए हैं ... आज भी आपके स्कूलों से ईसाई स्कूलों की फीस कम और स्तर बहुत अच्छा है... क्यों ? ...मिशनरी स्कूल के प्रिंसपल का बच्चा मिशनरी स्कूल में पढता है पर सरकारी स्कूल में सरकारी कर्मचारियों के बच्चों का पढना अनिवार्य नहीं है ...भारत में चन्द्रगुप्त -चाणक्य ने जन सुविधाओं / न्याय की निश्चितता / लिखित क़ानून / जन शिक्षा के अभिनव प्रयोग किये थे पर बिन्दुसार का अतिसार उन्हें ले बीता ...आपने जब कुछ दिया ही नहीं और मैकोले ने उस शून्य को भरा तब आप मेकॉले को कोस कर क्या कहना चाहते हैं ? ....मेकॉले ने तुम्हारी व्यवस्था ...तुम्हारी न्यायपालिका , तुम्हारे क़ानून , तुम्हारी अदालतें हटा कर अपनी नहीं दी ...मैकॉले ने तुम्हारे स्कूल हटा कर अपनी शिक्षा पद्धति नहीं दी ...मैकॉले ने तुम्हारी दंड सहित /साक्ष्य अधिनियम /प्रक्रिया संहिता हटा कर अपनी नहीं स्थापित की मैकॉले ने तो जब कोइ व्यवस्था ही नहीं थी तब एक व्यवस्था की नीव डाली जिस पर आपने अपने आधुनिक भारत की इमारत बुलंद की हैं ...मैकॉले आपकी निरंतर बुलंद होती भारत की इमारत का नींव का पत्थर है ...नालायक संतानों की पहचान होती है कि वह खुद कुछ नहीं करते और कुछ करने वाले को पुरजोर कोसते हैं ... हम भारतीय मूल के लोगों ने या काबुल कंधार से आये मुगलों ने किया ही क्या है ? .... अव्यवस्था में मेकॉले व्यवस्था स्थापित कर गया ...हम पर आज भी मेकॉले से बेहतर कोई अन्य वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है ....ऐसे में हम अपने पुरखों की अकर्मण्यता को कोसें इससे बेहतर है मैकॉले को धन्यवाद दें ." ----- राजीव चतुर्वेदी


गाय तथा सूअर की चर्बी पर 1857 की क्रान्ति ही नहीं हुयी थी 2017 की भी क्रान्ति होगी


"मुसलमान गऊ मांस न खाएं पर गाय क्या खाये यह हिन्दू बताएं ?... क्या "गाय क्या खाये" इसकी कोई धार्मिक सामाजिक व्यवस्था है ?.... सुपोषित गायें गऊ वंश में अल्पसंख्यक हैं और कुपोषित बहुसंख्यक । जम्मू कश्मीर में या अन्य किसी मुस्लिम बहुल इलाके में अगर हिन्दूओं का कोई वर्ग सुअर का मांस खाये तो मुसलामानों को कैसा लगेगा ?...क्या इसे मुसलमान बर्दाश्त कर सकेंगे ?... तो फिर अमन की कोशिश में मुसलमान क्या मात्र इतना भी नहीं कर सकते कि गऊ मांस न खाएं ? यह अमन और सहअस्तित्व की सार्थक पहल होगी । क्या मुसलमान यह करेंगे ?... अगर "हाँ" तो सहअस्तित्व की संभावना है और अगर "नहीं " तो सहअस्तित्व अकेले हिंदुओं की ही राष्ट्रीय जिम्मेदारी नहीं । याद रहे; अघुलनशील अस्मिता राष्ट्र की एकता में बाधा है और गाय तथा सूअर की चर्बी पर 1857 की क्रान्ति ही नहीं हुयी थी 2017 की भी क्रान्ति होगी ।"
---- राजीव चतुर्वेदी

" राजीव चतुर्वेदी "


"खुदा
यह खून के धब्बे जो बिखरे हैं तेरे दामन पे ,
तू मुंसिफ हो नहीं सकता
तू मुद्दयी बन नहीं पाया
मेरे मुकद्दर में तू मुलजिम है 

और मैं मुद्दई ...हूर के नूर से रंगीन मुलजिम रक्स करते हैं
और मैं तेरे ही गुनाहों से ग़मगीन
जिस दिन तू खुद ही धो सके यह खून के धब्बे अपने दामन से 

चला आना
मैं खुद ब खुद तुझको खुदा कहने लगूंगा
मैं तेरा इंतज़ार करता हूँ क़यामत तक
तब तक मैं तुझे बर्खास्त करता हूँ 
." ---- राजीव चतुर्वेदी
 
"ऐ खुदा
अगर यह तेरी मर्जी से हुआ है
तो तू बहुत गन्दा है ...थू तुझ पर
और
अगर यह तेरी मर्जी से नहीं हुआ 

तो तू नाकारा
मैंने सोचा था तू रहमदिल है
तेरे बन्दे ही गंदे होंगे 

इबादत के नाम पर सियासत से रियासत बनाने वाले
मौलवी और इमाम की दूकान पर धंधे होंगे
अब तो तेरा रहम वहम ही निकला
अगर तू खुदा है तो लौटा दे मेरे बच्चों को
वरना अब चीख कर मैं कहता हूँ
तू या तो कातिल है या नाकारा
आज अपनी औलाद के साथ
अल्लाह तेरे अकीदे को
सुपुर्द ऐ ख़ाक मैं कर आया .
 " 
----- राजीव चतुर्वेदी


16. "तू जालिम है" --- कहूँगा मैं ...मुलाजिम मैं नहीं तेरा


"यह युद्ध
यह क़त्ल
यह भूख

यह जिस्म की हर किस्म बिकती हुयी बाज़ार में
बाज़ार में बेज़ार से हम सोचते हैं
मैं तो बिक रहा हूँ
तू खरीदार का है तो मेरा कहाँ से होगा ?
रहम का वहम अब मुझको नहीं
तू भगवान है , ईसा या अल्लाह
कौन है तू ?
अगर यह दुनियाँ तेरी है तो तू अपने पास रखले
अगर यह जिन्दगी तेरी है तो इसको भी तू अपने पास रखले
तू जालिम है ...तू जालिम है ... तू जालिम है
"तू जालिम है" --- कहूँगा मैं
मुलाजिम मैं नहीं तेरा .
"
 ----- राजीव चतुर्वेदी


15. आँसुओ मजहब बताओ

"आँसुओ मजहब बताओ
कुछ केशरिया से आँसू हैं
तो कुछ आँसू हरे हरे से हैं
कुछ वामपंथ के आँसू सुर्ख लहू जैसे
कुछ पूंजीवादी आँसू हैं, कुछ अवसरवादी आँसू है 
यहाँ हर हड़ताली की आँखों में घड़ियाली से आंसू हैं
कुछ सरकारी आँसू हैं
विछोहों की विवशता से बिलखती आँख के आँसू
बहू की मौत पर पाखण्ड करती सास के आँसू
वास्तविक आँसू आँख में अक्सर चुपचाप रहते हैं
मौत विश्वास की हो , विवशता की या कि रिश्ते की
छलक जाते हैं कुछ आँसू भावना के भंगुर भूगोल को ले कर
खून का ग्रुप तो पता चल जाएगा
पर ख्वाब का ...ख्वाहिश का ग्रुप भी खोज लो
आँसुओं का ग्रुप पता हो जाएगा
ताप में ...संताप में जब भावना भाप सी उड़ने लगे
पर कहीं ठण्डक सी पा कर बूँद सी गिरने लगे
आँख की बस उस नमीं में आंसुओं का अक्स है 
आँसुओ मजहब बताओ
कुछ केशरिया से आँसू हैं
तो कुछ आँसू हरे भी हैं
यहाँ हर हड़ताली की आँखों में घड़ियाली से आंसू हैं
कुछ सरकारी आँसू हैं
विछोहों की विवशता से बिलखती आँख के आँसू
बहू की मौत पर पाखण्ड करती सास के आँसू.
 "

------ राजीव चतुर्वेदी


14. भूख की प्रतिद्वन्द्विता को सभ्यता कहते हैं लोग

"दरिंदे और परिंदे के बीच
एक दाना
जो दया का दिख रहा था
पर दाँव निकला
सभ्यता के बीच में फैला हुआ विस्तार है 

वही एक जाल है
भूख उसकी हो या मेरी
भूख का सहअस्तित्व हो सकता ही नहीं है
भूख की प्रतिद्वन्द्विता को सभ्यता कहते हैं लोग.
 "
-------- राजीव चतुर्वेदी


13. ऐ खुदा ... मैं तुझे बर्खास्त करता हूँ

"खुदा
यह खून के धब्बे जो बिखरे हैं तेरे दामन पे ,
तू मुंसिफ हो नहीं सकता
तू मुद्दयी बन नहीं पाया
मेरे मुकद्दर में तू मुलजिम है 

और मैं मुद्दई ...हूर के नूर से रंगीन मुलजिम रक्स करते हैं
और मैं तेरे ही गुनाहों से ग़मगीन
जिस दिन तू खुद ही धो सके यह खून के धब्बे अपने दामन से 

चला आना
मैं खुद ब खुद तुझको खुदा कहने लगूंगा
मैं तेरा इंतज़ार करता हूँ क़यामत तक
तब तक मैं तुझे बर्खास्त करता हूँ 
." ---- राजीव चतुर्वेदी
 
"ऐ खुदा
अगर यह तेरी मर्जी से हुआ है
तो तू बहुत गन्दा है ...थू तुझ पर
और
अगर यह तेरी मर्जी से नहीं हुआ 

तो तू नाकारा
मैंने सोचा था तू रहमदिल है
तेरे बन्दे ही गंदे होंगे 

इबादत के नाम पर सियासत से रियासत बनाने वाले
मौलवी और इमाम की दूकान पर धंधे होंगे
अब तो तेरा रहम वहम ही निकला
अगर तू खुदा है तो लौटा दे मेरे बच्चों को
वरना अब चीख कर मैं कहता हूँ
तू या तो कातिल है या नाकारा
आज अपनी औलाद के साथ
अल्लाह तेरे अकीदे को
सुपुर्द ऐ ख़ाक मैं कर आया .
 " 
----- राजीव चतुर्वेदी


12. कहानी एक थी किरदार जुदा थे अपने

"कहानी एक थी किरदार जुदा थे अपने
स्वार्थ में बँट चुके खुदगर्ज खुदा थे अपने
खुद को रिश्तों और फरिश्तों में हमने बाँट लिया
हर्फ़ तो एक पर ज़र्फ़ जुदा थे अपने
यह इत्तफाक था कि हम एक ही रास्ते के राहगीर हुए

यह हकीकत थी कि सराय एक थी स्वभाव जुदा थे अपने
प्यार रिश्तों में अहम था पर वहम ही निकला
मुहब्बत की इबारत में तिजारत झाँकती थी
अंदाज़ एक सा पर अहसास जुदा थे अपने
जब जरूरत पड़ी तो जज्वात भी हमने बाँट लिए
जरिया और नजरिया जुदा होता तो चल भी जाता
समंदर एक था साहिल ही जुदा थे अपने
तू भी एक रोज कश्ती सी कहीं डूब गयी
मैं भी लहूलुहान सूरज सा समंदर में हर शाम डूबता ही रहा
कहानी एक अंजाम जुदा थे अपने ."

------- राजीव चतुर्वेदी


11. लड़कियाँ पागल होती हैं

"लड़कियाँ पागल होती हैं
बचपन में लड़कियाँ अपना बचपना भूल अपने भाइयों को माँ की तरह दुलराती हैं
बचपन में लड़कियाँ खुद अच्छी चीजें नहीं खाती अपने भाइयों को खिलाती हैं
बचपन में लड़कियाँ खिलोनों के लिए जिद नहीं करतीं
अपने भाइयों को खिलौने दिलाती हैं 
क्योंकि लड़कियाँ पागल होती हैं 


"प्यार करना सबसे बड़ा गुनाह है" --- यह समझाया जाता है लड़कियों को बार-बार
इसलिए प्यार करना चाह कर भी किसी लड़के से प्यार नहीं करतीं
क्योंकि लड़कियाँ पागल होती हैं
फिर एक दिन लड़कियाँ न चाह कर भी प्यार कर लेती हैं
और फिर उससे पागलपन की हद तक प्यार करती हैं
क्योंकि लड़कियाँ पागल होती हैं 


लड़कियाँ जिससे कभी प्यार नहीं करतीं
उससे भी घरवालों के शादी कर देने पर प्यार करने लगती हैं
क्योंकि लड़कियाँ पागल होती हैं 

लड़कियाँ एक दिन माँ बनती हैं
फिर अपने बच्चों से पागलपन की हद तक प्यार करती हैं
एक-एक कर उनको सभी छोड़-छोड़ कर जाते रहते हैं
माता -पिता -भाई बताते हैं तुम परायेघर की हो
लड़कियाँ फिर भी उन्हें अपना मानती हैं
क्योंकि लड़कियाँ पागल होती हैं 

फिर ससुराल में बताया जाता है कि तुम पराये घर की हो
फिर भी वह ससुराल को अपना ही घर मान लेती हैं
क्योंकि लड़कियाँ पागल होती हैं 


लड़कियों को तो बचपन में ही बताया गया था
कि प्यार इस दुनियाँ का सबसे बड़ा गुनाह है
फिर भी लड़कियाँ प्यार करती हैं
बेटी बहन प्रेमिका पत्नी नानी और दादी के बदलते रूपों में भी प्यार करती हैं
क्योंकि लड़कियाँ पागल होती हैं

मनोवैज्ञानिक विद्वान् भावनाओं की बाढ़ को पागलपन कहते हैं
हानि -लाभ तो भौतिक घटना हैं
लड़कियाँ भावनाओं की पटरी पर दौड़ती हैं
क्योंकि लड़कियाँ पागल होती हैं
अंत में लड़कियाँ पछताती हैं कि उन्होंने प्यार क्यों किया
क्योंकि लड़कियाँ पागल होती हैं . 
"
 ---- राजीव चतुर्वेदी


10. निशा निमंत्रण के निनाद से हर सूरज के शंखनाद तक

"निशा निमंत्रण के निनाद से
हर सूरज के शंखनाद तक
रणभेरी के राग बहुत हैं
युद्धभूमि में खड़े हुए यह तो बतलाओ कौन कहाँ है ?
दूर दिलों की दीवारों से तुम भी देखो वहां झाँक कर
वहां हाशिये पर वह बस्ती राशनकार्ड हाथ में लेकर हांफ रही है
और भविष्य के अनुमानों से माँ की ममता काँप रही है
सिद्ध, गिद्ध और बुद्धि सभी की चोंच बहुत पैनी हैं
घमासान से घायल बैठे यहाँ होंसले,... वहां घोंसले
नंगे पाँव राजपथ पर जो रथ के पीछे दौड़ रहा है
वह रखवाला राष्ट्रधर्म का राग द्वेष की इस बस्ती में बहक रहा है
और दूर उन महलों का आँगन तोड़ी हुई कलियों के कारण महक रहा है
निशा निमंत्रण के निनाद से
हर सूरज के शंखनाद तक
रणभेरी के राग बहुत हैं
युद्धभूमि में खड़े हुए यह तो बतलाओ कौन कहाँ है ?"-
-----राजीव चतुर्वेदी

9. प्यार मेरे यार मैं भी करना चाहता था


"प्यार मेरे यार मैं भी करना चाहता था
मैं तुमसे मिलना चाहता था
पर किसी पार्क में नहीं


मैं चाहता था राजनीति की रणभूमि में हम मिलते
पर तुम्हें राजनीति पसंद नहीं
मैं चाहता था किसी शोध में हम मिलते
पर तुम्हें शोध पसंद नहीं
मैं कल्पना करता था कि
मैं रिक्शा चला रहा हूँ
और तुम मुट्ठी में बंद
अपने पिता की दौलत का एक नन्हा सा टुकड़ा लिए
घर से निकलती हो कॉलेज जाने को
मुझसे तय करती हो जिंदगी की दूरी के हिसाब से भाड़ा
पर तुमको मेहनत से कमाने वाले लोग पसंद नहीं
जिंदगी में मेहनत की गंध पर तुम मंहगा डियो स्प्रे करती हो


मैं तुमसे मिलना चाहता था
किसी चिंतन शिविर गोष्ठी या सेमीनार में
जहाँ राष्ट्र की दशा और दिशा पर चिंता हो
पर तुम्हें यह पसंद नहीं


मैं तुमसे मिलना चाहता था युद्ध के मैदान पर घायल लौट कर
मुझे अच्छा लगता कि
युद्ध से शेष बचा मैं जब लौटूँ
तो तुम कमसे कम अपना रूमाल मेरे घाव पर रख दोगी
मैं भरना चाहता था तुम्हारी माँग में अपने लहू के रँग
पर तुम्हें यह पसंद नहीं


मैं जानता हूँ तुम भी मुझे प्यार करती हो
पर अपनी माँग में
दूसरों का रँग मेरे लिए भरना चाहती हो
पर मुझे यह पसंद नहीं
मैं अपनी ख्वाहिशें अपने ख्वाब अपने ही खून के रंग से भरूंगा
और उसके लिए ताजिंदगी तिल तिल मरूँगा
विडम्बना यह कि
तुम मेरे साथ जीने आयी हो
और
मैं तुम्हारे साथ मरने आया हूँ .
"
---- राजीव चतुर्वेदी


8. उस चाय के प्याले में ...

" उस चाय के प्याले में शामिल थी
मुस्कराहट के लिबास में शाम की उदासी
डूबते सूरज की शेष बची आश
एक गुमशुदा सा अहसास ...हमारे आस पास ...बेहद ख़ास
धीरे से दबे पाँव आ कर हमारे बीच बैठा संकोची सा चंदा
चाय के कप से उठती रिश्तों की ऊष्मा की भाप
थोड़ी आशा, थोडा प्राश्चित, थोड़ी उदासी,
कुछ शेष बचे सपने

कुछ अवशेष से अपने
और एक लावारिस सा अहसास ...बेवजह पर बेहद ख़ास
उस कप में बहुत कुछ था जो रिश्तों में पी लिया हमने
उस कप में बहुत कुछ था जो रिश्तों में जी लिया हमने
उस चाय के प्याले में जो खालीपन है वह अपना है
जो भाप बन कर उड़ गया वह सपना है
चाय का खाली प्याला अब रिश्ते की तरह ठंडा है
छलक जाते हैं जो अहसास वह धब्बे से दिखते हैं
उस कप में बहुत कुछ था जो रिश्तों में पी लिया हमने
उस कप में बहुत कुछ था जो रिश्तों में जी लिया हमने .
"
 ---- राजीव चतुर्वेदी


7. यह गिरे हुए लोगों के ही समाचार प्रायः क्यों होते हैं ?

"आंधी आयी
आंधी से पेड़ गिरा ...पेड़ से आम गिरे
कहीं समाचार नहीं था
पेड़ से घोंसला गिरा
घोंसले से होंसला गिरा

उल्का गिरी ...जहाज गिरा ...सेंसेक्स गिरा
कल्पना चावला गिरी
सरकार गिरी
संसद में गांधी का चित्र गिरा
समाज का चरित्र गिरा
बोर वैल में बच्चा गिरा
बस खाई में गिरी
बिल्डिंग गिरी ...पुल गिरा
आसमान से पानी गिरा ...ओले गिरे ...युद्ध में शोले गिरे
ऐक्ट्रेस रेम्प पर गिरी ...बिजली कैम्प पर गिरी
अरे यार !
यह गिरे हुए लोगों के ही समाचार प्रायः क्यों होते हैं ?"

----- राजीव चतुर्वेदी


6. मैं शंकर तो नहीं था ...जहर पीता तो पीता कितना ?

"विषधरों की बस्तियों में मैं जीता तो जीता कितना ,
मैं शंकर तो नहीं था ...जहर पीता तो पीता कितना ?


समुद्र मंथनों का मेहनताना मैंने सुरा और सुन्दरी माँगी नहीं थी
सुख तेरे थे, शहर तेरा था, जज्वात मेरे ,जहर मेरा था 
बिजलियों की चौंध में जो अँधेरा था वह घर मेरा था
लक्ष्मी की हूक तेरी थी, भूख मेरी थी
एक बंटवारा था न्यारा जिसमें हर सुख तेरा दुःख मेरा था 


तुम्हारी कोशिशों के बाद भी मैं शव नहीं था इस लिए शिव कहा तुमने
समय के साथ बढ़ता वंश तेरा साँप सा हर दंश मेरा था 


जब भी तुम कभी मेरे मंदिर को आते हो
जानता हूँ तुम जहर भर भर के लाते हो
मैं नहीं मंदिर के अन्दर, जी रहा हूँ तेरे अन्दर घुट घुट के
सोचता हूँ इस शहर में मैं कब तक जी सकूंगा ?
इस जहर को कब तलक मैं पी सकूंगा ? 


चलो जाओ यहाँ से जहर फैला के फिर कभी मंदिर के अन्दर नहीं आना
मरीचिका से मोहब्बत है तुम्हें तो सत्य से फिर वास्ता कैसा ?
जहर ले कर चले हो तो मंदिरों का रास्ता कैसा ?


विषधरों की बस्तियों में मैं जीता तो जीता कितना ,
मैं शंकर तो नहीं था ...जहर पीता तो पीता कितना ?
"
 ----- राजीव चतुर्वेदी

5. मेरी शहादत दर्ज है रोशनी की हर इबारत में

"सदी लंबी
नदी गहरी और लहरें भी अराजक हैं ,
पतवार का हर वार कहता है
किनारे किनारा कर गए
कहीं गहरे में डूबूँगा
मछलियों की आँख कहती है
ये भूखी हैं
इन्हें सुन्दर मैं लगता हूँ

ऊब कर डूबूँ
इससे बेहतर है कि डूबूँ तैर कर
नदी के उस ओर सदी के छोर पर
बहतेी हुए पानी पर
डूबती यह जिंदगी उनवान लिखती है
शाम को जिस नदी के पानी में बहा कर
दिए बोये थे तुम्हारे प्यार ने
उस नदी में नहा कर
सुबह सूरज उग रहा है
मेरी शहादत दर्ज है रोशनी की हर इबारत में .
"

------ राजीव चतुर्वेद




4. और अबोधों की ये भीड़ ...



"सौन्दर्य बोध के सहमे सवाल
और अबोधों की ये भीड़
तुम बताओ क्या कहूं ? ... किस से कहूँ सपने अधूरे से ?


सुना है शब्द रहते थे यहाँ पर 
और उन शब्दों में पूरा एक शहर बसता था
दिन में कोलाहल सा था
कहकशाँ था शाम को
चांदनी चर्चित सी थी
मेरे हाथों का तकिया सा लगा कर रात जगती थी
सुबह सकपकाई सी सूरज की उंगली को थामे छोटे बच्चे सी
मेरे आँगन में आती थी
नादानियां शब्दों को ओढ़े फक्र करती थीं 

वही अब शब्द सारे हैं
जो रहस्यों को गुनगुनाते सूनी इमारत से खामोश बैठे हैं
जिन शब्दों में सारा संसार रहता था वहीं अब सन्नाटा सिमटा है
अब शब्द बीरान से हैं ...खोखले खामोश से हैं
खोखले शब्द खनकते हैं बहुत 


सौन्दर्य बोध के सहमे सवाल
और अबोधों की ये भीड़
तुम बताओ क्या कहूं ? ... किस से कहूँ सपने अधूरे से ?"
 ----- राजीव चतुर्वेदी


3.कहानी एक थी किरदार जुदा थे अपने

"कहानी एक थी किरदार जुदा थे अपने
स्वार्थ में बँट चुके खुदगर्ज खुदा थे अपने
खुद को रिश्तों और फरिश्तों में हमने बाँट लिया
हर्फ़ तो एक पर ज़र्फ़ जुदा थे अपने
यह इत्तफाक था कि हम एक ही रास्ते के राहगीर हुए

यह हकीकत थी कि सराय एक थी स्वभाव जुदा थे अपने
प्यार रिश्तों में अहम था पर वहम ही निकला
मुहब्बत की इबारत में तिजारत झाँकती थी
अंदाज़ एक सा पर अहसास जुदा थे अपने
जब जरूरत पड़ी तो जज्वात भी हमने बाँट लिए
जरिया और नजरिया जुदा होता तो चल भी जाता
समंदर एक था साहिल ही जुदा थे अपने
तू भी एक रोज कश्ती सी कहीं डूब गयी
मैं भी लहूलुहान सूरज सा समंदर में हर शाम डूबता ही रहा
कहानी एक अंजाम जुदा थे अपने ."

------- राजीव चतुर्वेदी

 2 .मैं माचिश हूँ मेरे मित्र

"मैं माचिश हूँ मेरे मित्र
तुम अगर ज्वलनशील होगे
तो हम मिल कर दहकेंगे
तुम अगर अगरबत्ती होगे
तो हम मिल कर महकेंगे

तुम अगर पानी होगे
तो तुमसे मिल कर मैं बुझ जाऊंगा
मुझे रगड़ो वक्त के शिलालेखों पर
मैं जलना चाहता हूँ
यह हो सकता है कि
तुम्हारे स्पर्श से कोई संगीत निकले
पर मैं तुम्हें छूना नहीं चाहता
मैं जलना चाहता हूँ अपनी आग में
आने वाली पीढ़ियों के उजाले के लिए
अपनी देह पर स्पर्श का संगीत सुनते
शायद तुम सोना चाहते हो
मैं दहकता हूँ
महकता हूँ
बहकता हूँ
पर आग लगाता हूँ
लोरी नहीं गाता
.
" ----- राजीव चतुर्वेदी



1. एक अहसास चीख कर चुप होता है

" एक अहसास चीख कर चुप होता है
एक उपहास दिल के दालानों में पसर कर बैठा
मैं जानता हूँ
जिन्दगी की इस धूप में पेड़ की परछाईं सी जो छाया है
वह तुम्हारी हमशक्ल सी लगती है मुझे 

शायद तुम्हीं हो
ओस से गिरते हमारे अहसास दिन में सूख जाते हैं
चांदनी क्यों चीखती थी रात को ?
सूरज सबेरे ही सवालों से घिरा यह पूछता है
सुना है वेदना अखबार में बिकने लगी है
मैं अकेला और तुम तनहा से तारों में कहीं अब दूर बैठे हो
हो सके तो दीवाली मनाने को मेरे पास चले आना
मैं तारों में खोज लेता हूँ तुम्हें पर बात बाकी है
इन हवाओं की गुजारिश प्यार करती सी गुजरती है
मैं अभी ठहरा नहीं हूँ
इस सफ़र में जब कभी ठहरूंगा तो बता दूंगा
प्यार, मौसम, यह हवाएं, चांदनी, वह धूप सूरज की,
पेड़ की छाया, काया हमारी और यह माया यहाँ रुकती नहीं है
रास्ते में तुम यहाँ अब कब मिलोगे ? -- प्रश्न यह पूछो नहीं
आभाष को अहसास कर लेना ." 
----- राजीव चतुर्वेदी

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