Tuesday, 12 January 2016

" क्या तुम कृष्ण को जानते हो ?"

क्या तुम कृष्ण को जानते हो ?


----- // 1- कृष्ण क्या है ? // ---
"कृष्ण उस प्यार की समग्र परिभाषा है जिसमें मोह भी शामिल है ...नेह भी शामिल है ,स्नेह भी शामिल है और देह भी शामिल है ...कृष्ण का अर्थ है कर्षण यानी खीचना यानी आकर्षण और मोह तथा सम्मोहन का मोहन भी तो कृष्ण है ...वह प्रवृति से प्यार करता है ...वह प्राकृत से प्यार करता है ...गाय से ..पहाड़ से ..मोर से ...नदियों के छोर से प्यार करता है ...वह भौतिक चीजो से प्यार नहीं करता ...वह जननी (देवकी ) को छोड़ता है ...जमीन छोड़ता है ...जरूरत छोड़ता है ...जागीर छोड़ता है ...जिन्दगी छोड़ता है ...पर भावना के पटल पर उसकी अटलता देखिये --- वह माँ यशोदा को नहीं छोड़ता ...देवकी को विपत्ति में नहीं छोड़ता ...सुदामा को गरीबी में नहीं छोड़ता ...युद्ध में अर्जुन को नहीं छोड़ता ...वह शर्तों के परे सत्य के साथ खडा हो जाता है टूटे रथ का पहिया उठाये आख़िरी और पहले हथियार की तरह ...उसके प्यार में मोह है ,स्नेह है,संकल्प है, साधना है, आराधना है, उपासना है पर वासना नहीं है . वह अपनी प्रेमिका को आराध्य मानता है और इसी लिए "राध्य" (अपभ्रंश में हम राधा कहते हैं ) कह कर पुकारता है ...उसके प्यार में सत्य है सत्यभामा का ...उसके प्यार में संगीत है ...उसके प्यार में प्रीति है ...उसके प्यार में देह दहलीज पर टिकी हुई वासना नहीं है ...प्यार उपासना है वासना नहीं ...उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और वासना देह की भौतिक अनुभूति इसी लिए वासना वैश्यावृत्ति है . जो इस बात को समझते हैं उनके लिए वेलेंटाइन डे के क्या माने ? अपनी माँ से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपने मित्र से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी बहन से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी प्रेमिका से प्यार करो कृष्ण की तरह ... .प्यार उपासना है वासना नहीं ...उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और वासना देह की भौतिक अनुभूति ." ----राजीव चतुर्वेदी

----- // 2- कृष्ण और पर्यावरण // ---
" आज कृष्ण का प्रतिपादित पर्यावरण दिवस है ...दीपावली के बाद हम गोवर्धन पूजा भी करते हैं . गो (गाय ) + वर्धन (बढाना ) यानी गऊ वंश को बढाने का संकल्प दिवस . ...आज गो वंश को बढ़ाना तो दूर जगह जगह आधुनिक कट्टीखाने खुल गए हैं ...दूध डेरी के उत्पादकों से अधिक कमाई चमड़े के व्यवसाई और कसाई कर रहे हैं ...आज पहाड़ों , जंगल और जंगल पर आधारित मानव सभ्यता के मंगल का दिवस है ...आज के दिन ही पर्यावरण की ...वन सम्पदा की ...नदियों की , जंगल की , पशु पक्षियों की रक्षा का संकल्प कभी द्वापर में जननायक कृष्ण ने लिया था . ...जननायक का संकल्प नालायक के हाथ में जब पड़ता है तो पर्यावरण का वही हाल होता है जो आज है . आज हम पहाड़ों की , प्रकृति की , सम्पूर्ण पर्यावरण की रक्षा और उसके संवर्धन का संकल्प लेते हैं ...औषधीय उत्पाद को घर पर ला कर उनके व्यंजन बनाते हैं ...गाय के वंश को बढाने का संकल्प लेते हैं ." ----- राजीव चतुर्वेदी

----- // 3- कृष्ण और महिला मुक्ति // ---
" !! यह काम न तो कोई NGO कर सका है ...न एमनेस्टी इंटरनेश्नल ...न राष्ट्र ...न संयुक्त राष्ट्र ...न कोई ईसाई मिशनरी ...न प्रशासन की कमिश्नरी ...और जन्नत में हूर के लिए धरती पर लंगूर बने लोगों के मजहब से तो उम्मीद ही क्या की जाए ? भगवान् कृष्ण ने नरकासुर का वध करके उसके शोषण से 16000 महिलाओं को मुक्त कराया था। नरकासुर का राज्य वर्तमान भारत के पूर्वोत्तर राज्यों (असाम /सिक्किम /मेघालय मणिपुर ) में था। यह हमला करके महिलाओं को उठा लेजाता था। कृष्ण महिला समानता और स्वतंत्रता के पक्षधर थे। जब उनको नरकासुर की करतूतों का पता चला तो उन्होंने लगभग कमांडो की शैली में कार्यवाही करते हुए नरकासुर का वध किया था। किन्तु न भूलें अभी नरकासुर के और भी छोटे, बड़े, मझोले संस्करण समाज में मौजूद हैं। अभी भी नरकासुर के क्षेत्र से विश्व की सब से ज्यादा बाल वेश्याएं आ रही हैं। अभी भी वहां देह व्यापार के सबसे बड़े अड्डे हैं। अभी भी भारतीय समाज में दहेज़खोर हैं ...अभी भी महिलाओं को मुकम्मल मुक्ति नहीं मिली है। क्या आज के दिन हम भगवान् कृष्ण से कोइ प्रेरणा लेंगे ? नरकासुर केनाम से ही इस दिन को नरक चतुर्दसी कहते हैं। नारी शोषण की मानसिकता का आज वध हुआ था अतः आज हम मनाते हैं महिला मुक्ति दिवस !! "---राजीव चतुर्वेदी

----- // 4- कृष्ण -- भूगोल और खगोल // ---
"कृष्ण की महारास लीला ...शरद ऋतु का प्रारम्भ होते ही प्रकृति परमेश्वर के साथ नृत्य कर उठाती है एक निर्धारित लय और ताल से ...त्रेता यानी राम के युग की मर्यादा रीति और परम्पराओं में द्वापर में परिमार्जन होता है ...स्त्री उपेक्षा से बाहर निकलती है ...द्वापर में कृष्ण सामाजिक क्रान्ति करते हैं फलस्वरूप स्त्री -पुरुष के समान्तर कंधे से कन्धा मिला कर खड़ी हो जाती है ...स्त्री पुरुष के बीच शोषण के नहीं आकर्षण के रिश्ते शुरू होते है ..."कृष" का अर्थ है खींचना कर्षण का आकर्षणजनित अपनी और खिंचाव ...द्वापर में जिस नायक पर सामाजिक शक्तियों का ध्रुवीकरण होता है ...जो व्यक्ति कभी सयास और कभी अनायास स्त्री और पुरुषों को अपनी और खींचता है ...सामाजिक शक्तियों का कर्षण करता है कृष्ण कहलाता है ....शरद पूर्णिमा पर खगोल के नक्षत्र नाच उठते हैं ...राशियाँ नाच उठती है और राशियों के इस लयात्मक परिवर्तन को ...राशियों के इस नृत्य को "रास " कहते हैं ...खगोल में राशियों का नृत्य अनायास यानी "रास" और भूगोल में इन राशियों के प्रभाव से प्रकृति का आकर्षण और परमेश्वर का अतिक्रमण वह संकर संक्रमण है जो सृजन करता है ...दुर्गाष्टमी के विसृजन के बाद पुनः नवनिर्माण नव सृजन का संयोग . कृष्ण स्त्री -पुरुष संबंधों को शोषणविहीन सहज सामान और भोग के स्तर पर भी सम यानी सम्भोग (सम +भोग ) मानते थे ...जब खगोल में राशियाँ नृत्य करती हैं और रास होता है ...जब भूगोल में प्रकृति परमेश्वर से मिलने को उद्यत होती है ...जब फूल खिल उठते हैं ...जब तितलियाँ नज़र आने लगती हैं ...जब रात से सुबह तक समीर शरीर को छू कर सिहरन पैदा करता है ...जब युवाओं की तरुणाई अंगड़ाई लेती है तब कृष्ण का समाज भी आह्लाद में नृत्य कर उठता है ...खगोल में राशियों के रास यानी कक्षा में नृत्य के साथ भूगोल भी नृत्य करता है और उस भूगोल की त्वरा को आत्मसात करने की आकांक्षा लिए समाज भी नृत्य करता है ...खगोल में राशियों के नृत्य को रास कहते हैं ...राशियाँ नृत्य करती हैं धरती नृत्य करती है ...अपने अक्ष पर घूमती भी है ...चंद्रमा , शुक्र ,मंगल , बुध शनि ,बृहस्पति आदि राशियाँ घूमती हैं , नृत्य करती हैं ...धरती घूमती है और नाचती भी ...खगोल और भूगोल नृत्य करता है ...और उससे प्रभावित प्रकृति भी ...खगोल ,भूगोल और भूगोल पर प्रकृति नृत्य करती है राशियों की त्वरा (फ्रिक्येंसी ) पर नृत यानी रास करती है ...सभी राशियों के अपने अपने ध्रुव हैं ...ध्रुवीकरण हैं ...भौगोलिक ही नहीं सामाजिक ध्रुवीकरण भी हैं ...द्वापर में यह ध्रुवीकरण जिस नायक पर होता है उसे कृष्ण कहते हैं ...और खगोल से भूगोल तक राशियों से प्रभावित लोग कृष्ण को केंद्र मान कर रास करते हैं ." ------- राजीव चतुर्वेदी

----- // 5 - कृष्ण और गीता // ---
----- // श्री मद्-भगवत गीता के बारे में सत्य और तथ्य // ----

"प्रश्न - किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।


प्रश्न --कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।


प्रश्न --भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।


प्रश्न --कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी


प्रश्न --कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।


प्रश्न --कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में


प्रश्न --क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।


प्रश्न -- कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय .


प्रश्न -- कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक


प्रश्न --गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।


प्रश्न --गीता को अर्जुन के अलावा और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने .


प्रश्न --अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को.


प्रश्न -- गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में .


प्रश्न --गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति- पर्व का एक हिस्सा है।


प्रश्न --गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद .


प्रश्न -- गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण ने- 574, अर्जुन ने- 85, धृतराष्ट्र ने- 1 तथा संजय ने- 40.
 " ------ राजीव चतुर्वेदी

.....

शोकगीत में उगी हुई यह कविता तुम्हें कैसी लगी ?

"हमेशा की तरह इस बार भी त्यौहार पर मुझे लोग पूछेंगे
बता देना --वह अब यहाँ नहीं रहता
दर -ओ -दीवार में भी नहीं
दिल -ओ -दिमाग में भी नहीं
यहाँ तो मर गया था वह
जनाजा जिम्मेदारी से वह खुद ही ले गया अपना, जरूरत के लिफ़ाफ़े में
वह किश्तों में मर रहा है फिर भी ज़िंदा है 
हमारे लिए तो वह मर चुका है
तुम्हारे लिए ज़िंदा हो तो तलाश लो
ज़िंदा होगा कहीं अपने वीराने में
वह मर तो गया था बहुत पहले
पर सुना है सांस लेता है अभी
लोगों का मन रखने को हंसता भी है
प्यार के अभिवादन में मुस्कुराता भी है
वह मिजाज से रंगीन नहीं ग़मगीन सा था
वह कभी भी दीपावली पर पटाके नहीं चलाता था
उसे शोर नहीं पसंद ...संगीत पर भी वह नहीं थिरकता
दैहिक सुन्दरता उसे मुग्ध नहीं करती
दार्शनिक सुन्दरता वह समझता है
मरा हुआ आदमी शांत होता है न
पर संवेदना से वह सहम सा जाता है
शायद इसीलिए लोग उसे ज़िंदा मानते हैं ...औरों से ज्यादा ज़िंदा
उसके वीराने में कोई दस्तक दे ...यह उसे पसंद नहीं था पहले
उसकी मौजूदगी ऐसी थी जैसे शवयात्रा में कोई खिलखिला कर हंस पड़े
पर वह मर चुका है
उसके मरने की खबर सुन कर कुछ लोग खुश हैं 
वह मर कर भी उनको खुशी दे गया
जो दुखी हैं वह इसलिए कि अब वह और खुशी नहीं दे सकेगा
वह अन्दर से तिलमिलाता
और बाहर से खिलखिलाता
अपनी शवयात्रा में शामिल है
सुना है वह बहुत साहसी है ...मरने से नहीं डरता
मर चुका आदमी भला मरने से डरेगा भी क्यों ?
मैंने उसे छोड़ दिया तो कौन सी बड़ी बात है
शरीर को आत्मा भी तो छोड़ देती है एक रोज
वह डूब रहा है अपने ही सन्नाटे में
बाहर के सन्नाटे से शोकाकुल है वह
वह अजीब है
डूबता हुआ आदमी, तैरता है तुम्हारी यादों में
जैसे लाश तैरती हो नदी में
जैसे आस तैरती हो सदी में
शोकगीत में उगी हुई यह कविता तुम्हें कैसी लगी ?
मरने के पहले वह बहुत कुछ जानना चाहता था, ...यह भी."
 ---- राजीव चतुर्वेदी 

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