भारत बोल रहा है ...पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा
"भारत बोल रहा है ...
भारत आज़ादी से अब तक बोल रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा . रोशनी, रास्ते, राशन और रोजगार पर इण्डिया का कब्ज़ा है और ग्रामीण भारत असहाय अँधेरे में चीख रहा है ...ग्रामीण भारत में अँधेरा है और शहरी इण्डिया सोडियम लाईट में सुनहरा दिख रहा है . भारत बोल रहा है ...चीख रहा है ...कराह रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ...भारत हिन्दी /तमिल /तेलगू /मलयालयी /असमिया /बांग्ला / गुजराती /उड़िया /मणिपुरी में बोल रहा है और इण्डिया अंगरेजी में सुन रहा है ...भारत का जन -गण-मन अपनी भाषाओं में न्याय की गुहार करता है तो इण्डिया के वकील उसे अंगरेजी में लिखते , इण्डिया के जज उसे अंगरेजी में समझते और फैसला देते हैं ...भारत में न्याय की भाषा इण्डिया की अंगरेजी है ... भारत में अर्थ शास्त्र /बजट की भाषा इण्डिया की अंगरेजी है ...भारत के जन -गण-मन से वोट माँगा जाता है देसी भाषाओं में और फिर इंडिया राज्य चलाता है अंगरेजी भाषा में ... भारत के बच्चे गाँव देहात के सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं और इंडिया के बच्चे अभिजात्य अंगरेजी स्कूलों में ...भारत बोल रहा है कि सामान शिक्षा दो पर इण्डिया की चुप्पी है ...भारत के लोग सरकारी अस्पताल में इलाज करवाते हैं और इण्डिया के लोग नर्सिंग होम में ...भारत के लोग सेना में भारती होते है और पाकिस्तान से युद्ध लड़ते हैं और इण्डिया के लोग IPL से जुड़ते हैं और भारत -पाकिस्तान क्रिकेट का मजा लेते हैं ... भारत बोल रहा है कि बेरोजगारी बड़ी समस्या है ...जन चिकित्सा स्तरहीन है ...न्याय सस्ता और समय पर उपलब्ध नहीं है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ...इण्डिया की संसद में गत 67 सालों में बेरोजगारी पर अब तक कुल मिला कर 2 घंटे 48 मिनट ही बहस हुयी है , जन चिकित्सा पर 18 घंटे , सामान शिक्षा पर 3 घंटे 16 मिनट और सस्ते सुलभ न्याय पर 16 घंटे 24 मिनट ही चर्चा हुयी है ( श्रोत -- लोकसभा अध्यक्ष पी ए संगमा की रिपोर्ट रिवाइज्ड )...बहरहाल भारत आज़ादी से अब तक बोल रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ." ----- राजीव चतुर्वेदी
"भारत बोल रहा है ...
भारत आज़ादी से अब तक बोल रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा . रोशनी, रास्ते, राशन और रोजगार पर इण्डिया का कब्ज़ा है और ग्रामीण भारत असहाय अँधेरे में चीख रहा है ...ग्रामीण भारत में अँधेरा है और शहरी इण्डिया सोडियम लाईट में सुनहरा दिख रहा है . भारत बोल रहा है ...चीख रहा है ...कराह रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ...भारत हिन्दी /तमिल /तेलगू /मलयालयी /असमिया /बांग्ला / गुजराती /उड़िया /मणिपुरी में बोल रहा है और इण्डिया अंगरेजी में सुन रहा है ...भारत का जन -गण-मन अपनी भाषाओं में न्याय की गुहार करता है तो इण्डिया के वकील उसे अंगरेजी में लिखते , इण्डिया के जज उसे अंगरेजी में समझते और फैसला देते हैं ...भारत में न्याय की भाषा इण्डिया की अंगरेजी है ... भारत में अर्थ शास्त्र /बजट की भाषा इण्डिया की अंगरेजी है ...भारत के जन -गण-मन से वोट माँगा जाता है देसी भाषाओं में और फिर इंडिया राज्य चलाता है अंगरेजी भाषा में ... भारत के बच्चे गाँव देहात के सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं और इंडिया के बच्चे अभिजात्य अंगरेजी स्कूलों में ...भारत बोल रहा है कि सामान शिक्षा दो पर इण्डिया की चुप्पी है ...भारत के लोग सरकारी अस्पताल में इलाज करवाते हैं और इण्डिया के लोग नर्सिंग होम में ...भारत के लोग सेना में भारती होते है और पाकिस्तान से युद्ध लड़ते हैं और इण्डिया के लोग IPL से जुड़ते हैं और भारत -पाकिस्तान क्रिकेट का मजा लेते हैं ... भारत बोल रहा है कि बेरोजगारी बड़ी समस्या है ...जन चिकित्सा स्तरहीन है ...न्याय सस्ता और समय पर उपलब्ध नहीं है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ...इण्डिया की संसद में गत 67 सालों में बेरोजगारी पर अब तक कुल मिला कर 2 घंटे 48 मिनट ही बहस हुयी है , जन चिकित्सा पर 18 घंटे , सामान शिक्षा पर 3 घंटे 16 मिनट और सस्ते सुलभ न्याय पर 16 घंटे 24 मिनट ही चर्चा हुयी है ( श्रोत -- लोकसभा अध्यक्ष पी ए संगमा की रिपोर्ट रिवाइज्ड )...बहरहाल भारत आज़ादी से अब तक बोल रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ." ----- राजीव चतुर्वेदी
भारत आज़ादी से अब तक बोल रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा . रोशनी, रास्ते, राशन और रोजगार पर इण्डिया का कब्ज़ा है और ग्रामीण भारत असहाय अँधेरे में चीख रहा है ...ग्रामीण भारत में अँधेरा है और शहरी इण्डिया सोडियम लाईट में सुनहरा दिख रहा है . भारत बोल रहा है ...चीख रहा है ...कराह रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ...भारत हिन्दी /तमिल /तेलगू /मलयालयी /असमिया /बांग्ला / गुजराती /उड़िया /मणिपुरी में बोल रहा है और इण्डिया अंगरेजी में सुन रहा है ...भारत का जन -गण-मन अपनी भाषाओं में न्याय की गुहार करता है तो इण्डिया के वकील उसे अंगरेजी में लिखते , इण्डिया के जज उसे अंगरेजी में समझते और फैसला देते हैं ...भारत में न्याय की भाषा इण्डिया की अंगरेजी है ... भारत में अर्थ शास्त्र /बजट की भाषा इण्डिया की अंगरेजी है ...भारत के जन -गण-मन से वोट माँगा जाता है देसी भाषाओं में और फिर इंडिया राज्य चलाता है अंगरेजी भाषा में ... भारत के बच्चे गाँव देहात के सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं और इंडिया के बच्चे अभिजात्य अंगरेजी स्कूलों में ...भारत बोल रहा है कि सामान शिक्षा दो पर इण्डिया की चुप्पी है ...भारत के लोग सरकारी अस्पताल में इलाज करवाते हैं और इण्डिया के लोग नर्सिंग होम में ...भारत के लोग सेना में भारती होते है और पाकिस्तान से युद्ध लड़ते हैं और इण्डिया के लोग IPL से जुड़ते हैं और भारत -पाकिस्तान क्रिकेट का मजा लेते हैं ... भारत बोल रहा है कि बेरोजगारी बड़ी समस्या है ...जन चिकित्सा स्तरहीन है ...न्याय सस्ता और समय पर उपलब्ध नहीं है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ...इण्डिया की संसद में गत 67 सालों में बेरोजगारी पर अब तक कुल मिला कर 2 घंटे 48 मिनट ही बहस हुयी है , जन चिकित्सा पर 18 घंटे , सामान शिक्षा पर 3 घंटे 16 मिनट और सस्ते सुलभ न्याय पर 16 घंटे 24 मिनट ही चर्चा हुयी है ( श्रोत -- लोकसभा अध्यक्ष पी ए संगमा की रिपोर्ट रिवाइज्ड )...बहरहाल भारत आज़ादी से अब तक बोल रहा है पर इण्डिया सुन ही नहीं रहा ." ----- राजीव चतुर्वेदी
मैकॉले को कोसने से कुछ नहीं होगा ...आत्मवंचना कीजिये
" मैकॉले को कोसने से कुछ नहीं होगा ...आत्मवंचना कीजिये ...गुजरे 1000 सालों में हिन्दू राजाओं ने या मुग़ल बादशाहों ने अपनी प्रजा के लिए किया ही क्या था ? ...हिन्दू राजाओं /मुग़ल बादशाहों ने कभी अपने लिए या अपनी प्रजा के लिए कोई लिपिबद्ध आचार संहिता बनायी ? -- नहीं . कोई शिक्षानीति बनायी ? -- नहीं . कोई सर्व शिक्षा अभियान चलाया ? --- नहीं . कोई जनस्वास्थ्य की बात की ? -- नहीं .कभी किसी देश की कल्पना की ? -- नहीं . कभी राष्ट्र की कल्पना की ? -- नहीं ? अपने राज्य के लिए कभी कोई संविधान बनाया ? -- नहीं ....केवल असमर्थों पर अत्याचार करते रहे ...लूटते रहे ...लडकियाँ उठाते रहे ...लुटेरों की तरह लूटते रहे ....डकैत गिरोहों की तरह लूटते रहे ...भारी पड़े तो लूट लिया , दूसरों की जर/जोरू /जमीन पर कब्ज़ा कर लिया और कोई भारी पड़ा तो भाग लिए ...अपनी सत्ता को स्थाइत्व देने के लिए जनता को कुछ राहत तो देनी पड़ती है ...हिन्दू राजाओं की चरित्रहीनता से ऊबी जनता को मुग़ल बादशाहों ने थोड़ी राहत दे कर लूटा ...क्या बात थी कि कर्मवती को पूरे भारत में कोई भाई चरित्र नहीं दिखा और हुमायूं भारत में राखी के बहाने आ डटा ? ...मुगलों ने भारत में भरपूर अत्याचार किये पर आम जनता को कुछ नागरिक सुविधाएं भी दीं ...न्याय के लिए नियमित अदालतों की व्यवस्था हुयी ...वकील,मुंसिफ ,मुद्दई ,मुलजिम ,जिरह,बहस ,जमानत , गिरफ्तार , फैसला आदि सारे उर्दू के शब्द हैं . इनका एक भी प्रचलित हिन्दी /संस्कृत/ बंगाली / कन्नड़ /तमिल /तेलगू /उड़िया में शब्द नहीं है . चूंकि मुगलों के पहले व्यवस्था ही नहीं थी तो शब्द कहाँ से होता ? ...सोशियल पुलिसिंग चालू हुयी कोतवाल , दरोगा , हवलदार ,दीवान ,मुन्सी ,बयान और पुलिसिया रोज नामचों में दर्ज होने वाले तमाम तकनीकी शब्द उर्दू के हैं , अरबी के हैं पर भारतीय भाषाओं के नहीं .-- क्यों ? ...क्योंकि नागरिकों को पुलिस व्यवस्था देने के लिए भारतीय मूल के राजाओं ने सोचा ही नहीं . मुगलों ने सड़कें बनवाईं , पुल बनवाये ...अदालतें बनवाईं ...जन स्वास्थ्य के लिए सफाखाने (अस्पताल ) बनवाये ...भारतीय जनता खुश हुयी होगी ...एक लुटेरे को खदेड़ कर दूसरा लुटेरा आया था पर वह उसे ही तो लूट रहा था जिस पर कुछ था ...लुटी पिटी जनता को अब कुछ जन सुविधाएं भी थी ... जन विश्वास खो चुके और पूर्ण शोषक हो चुके क्षत्रीय राजाओं की मूंछें और उनके मंत्री पण्डित जी की शिखा और यज्ञोपवीत मुगलों ने बेरहमी से नोच ली थी ...अब लुटेरे बन कर आये मुगलों ने लूट कर भागने के बजाय यहीं पैर जमा लिए ...सत्ता जमाते हुए उन्होंने सरकार को स्वरुप दिया ...न्यायव्यवस्था कायम हुयी ...स्वास्थ सेवायें शुरू हुईं ...पुलिस अस्थ्त्व में आयी ...परिवहन के लिए सड़कें बनीं ...जमीनों के नक़्शे बने ...राज्य चलाने के लिए राजस्व वसूली की व्यवस्था हुयी ...जमींदारी व्यवस्था ने पैर जमाये ...मुगलों ने भारतीय मूल के राजाओं का सैनिक बन कर लड़ने वाले गरीब कुचले हुए विपन्न लोगों को पहली बार नागरिक सुविधाएं दीं . इससे मुगलों के विरुद्ध भारतीय मूल के राजाओं को सैनिक मिलना बंद हो गए ...अब संपन्न की हिफाजत विपन्न ने करना बंद कर दी थी ...क्षत्रीय राजाओं की शान और उनके पुरोहित बने पण्डितजीयों का ज्ञान मुगलों का गुलाम बन चुका था ....फिर पैर स्थाई जमते ही मुग़ल लुटेरे बादशाह बन बैठे और उन्होंने भी क्रूरता से शोषण जारी किया तो अंग्रेज आये . अंग्रेजों ने व्यापार का कल्याणकारी मुखौटा लगाया और वार किया ...अंग्रेज सत्ता की स्थापना के बाद अंग्रेजों ने भारतीय मूल के शेष या यों कहें कि अवशेष राजाओं की मूंछें , पंडितों की मुगलों से शेष बची शिखा तो उखाड़ ही ली साथ ही मुग़ल बादशाहों की और उनके साथी मुल्लों की दाढ़ी भी उखाड़ ली ...ठाकुर साहब की मूंछें , पंडितों की शिखा और मुगलों की दाढी अब अंग्रेजों के दरबार में कालीन बन कर बिछी थी ...पददलित ...भारतीय मूल के या मुग़ल राजाओं ने स्कूल नहीं खोले थे ...दूर दराज के आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनरी स्कूल खोले गए ... झाबुआ, बस्तर, जगदलपुर जैसी जगह अंगरेजी स्कूल और अस्पताल खुलने लगे ...गरीबों के बच्चे साक्षर हो रहे थे माध्यम वर्ग के बच्चे समझदार और उच्च वर्ग के बच्चे शिक्षित ...न्याय और प्रशासन की भाषा अंगरेजी हो चली ...सड़कें बनी ...आज के न्यायालयों /विधान सभाओं /संसद /विश्वविद्यालयों की इमारतें अंग्रेजों की बनवाई हैं ...रेलवे अंग्रेजों की बनवाई है ....हम तो अंग्रेजों की बनायी व्यवस्था पर अंग्रेजों को खदेड़ कर बस बैठ गए हैं ...न हमने व्यवस्था बनायी है न क़ानून ...लगभग 2800 केन्द्रीय कानूनों ( Central Act ) में 2635 अंग्रेजों के बनाए हुए हैं ... आज भी आपके स्कूलों से ईसाई स्कूलों की फीस कम और स्तर बहुत अच्छा है... क्यों ? ...मिशनरी स्कूल के प्रिंसपल का बच्चा मिशनरी स्कूल में पढता है पर सरकारी स्कूल में सरकारी कर्मचारियों के बच्चों का पढना अनिवार्य नहीं है ...भारत में चन्द्रगुप्त -चाणक्य ने जन सुविधाओं / न्याय की निश्चितता / लिखित क़ानून / जन शिक्षा के अभिनव प्रयोग किये थे पर बिन्दुसार का अतिसार उन्हें ले बीता ...आपने जब कुछ दिया ही नहीं और मैकोले ने उस शून्य को भरा तब आप मेकॉले को कोस कर क्या कहना चाहते हैं ? ....मेकॉले ने तुम्हारी व्यवस्था ...तुम्हारी न्यायपालिका , तुम्हारे क़ानून , तुम्हारी अदालतें हटा कर अपनी नहीं दी ...मैकॉले ने तुम्हारे स्कूल हटा कर अपनी शिक्षा पद्धति नहीं दी ...मैकॉले ने तुम्हारी दंड सहित /साक्ष्य अधिनियम /प्रक्रिया संहिता हटा कर अपनी नहीं स्थापित की मैकॉले ने तो जब कोइ व्यवस्था ही नहीं थी तब एक व्यवस्था की नीव डाली जिस पर आपने अपने आधुनिक भारत की इमारत बुलंद की हैं ...मैकॉले आपकी निरंतर बुलंद होती भारत की इमारत का नींव का पत्थर है ...नालायक संतानों की पहचान होती है कि वह खुद कुछ नहीं करते और कुछ करने वाले को पुरजोर कोसते हैं ... हम भारतीय मूल के लोगों ने या काबुल कंधार से आये मुगलों ने किया ही क्या है ? .... अव्यवस्था में मेकॉले व्यवस्था स्थापित कर गया ...हम पर आज भी मेकॉले से बेहतर कोई अन्य वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है ....ऐसे में हम अपने पुरखों की अकर्मण्यता को कोसें इससे बेहतर है मैकॉले को धन्यवाद दें ." ----- राजीव चतुर्वेदी
" मैकॉले को कोसने से कुछ नहीं होगा ...आत्मवंचना कीजिये ...गुजरे 1000 सालों में हिन्दू राजाओं ने या मुग़ल बादशाहों ने अपनी प्रजा के लिए किया ही क्या था ? ...हिन्दू राजाओं /मुग़ल बादशाहों ने कभी अपने लिए या अपनी प्रजा के लिए कोई लिपिबद्ध आचार संहिता बनायी ? -- नहीं . कोई शिक्षानीति बनायी ? -- नहीं . कोई सर्व शिक्षा अभियान चलाया ? --- नहीं . कोई जनस्वास्थ्य की बात की ? -- नहीं .कभी किसी देश की कल्पना की ? -- नहीं . कभी राष्ट्र की कल्पना की ? -- नहीं ? अपने राज्य के लिए कभी कोई संविधान बनाया ? -- नहीं ....केवल असमर्थों पर अत्याचार करते रहे ...लूटते रहे ...लडकियाँ उठाते रहे ...लुटेरों की तरह लूटते रहे ....डकैत गिरोहों की तरह लूटते रहे ...भारी पड़े तो लूट लिया , दूसरों की जर/जोरू /जमीन पर कब्ज़ा कर लिया और कोई भारी पड़ा तो भाग लिए ...अपनी सत्ता को स्थाइत्व देने के लिए जनता को कुछ राहत तो देनी पड़ती है ...हिन्दू राजाओं की चरित्रहीनता से ऊबी जनता को मुग़ल बादशाहों ने थोड़ी राहत दे कर लूटा ...क्या बात थी कि कर्मवती को पूरे भारत में कोई भाई चरित्र नहीं दिखा और हुमायूं भारत में राखी के बहाने आ डटा ? ...मुगलों ने भारत में भरपूर अत्याचार किये पर आम जनता को कुछ नागरिक सुविधाएं भी दीं ...न्याय के लिए नियमित अदालतों की व्यवस्था हुयी ...वकील,मुंसिफ ,मुद्दई ,मुलजिम ,जिरह,बहस ,जमानत , गिरफ्तार , फैसला आदि सारे उर्दू के शब्द हैं . इनका एक भी प्रचलित हिन्दी /संस्कृत/ बंगाली / कन्नड़ /तमिल /तेलगू /उड़िया में शब्द नहीं है . चूंकि मुगलों के पहले व्यवस्था ही नहीं थी तो शब्द कहाँ से होता ? ...सोशियल पुलिसिंग चालू हुयी कोतवाल , दरोगा , हवलदार ,दीवान ,मुन्सी ,बयान और पुलिसिया रोज नामचों में दर्ज होने वाले तमाम तकनीकी शब्द उर्दू के हैं , अरबी के हैं पर भारतीय भाषाओं के नहीं .-- क्यों ? ...क्योंकि नागरिकों को पुलिस व्यवस्था देने के लिए भारतीय मूल के राजाओं ने सोचा ही नहीं . मुगलों ने सड़कें बनवाईं , पुल बनवाये ...अदालतें बनवाईं ...जन स्वास्थ्य के लिए सफाखाने (अस्पताल ) बनवाये ...भारतीय जनता खुश हुयी होगी ...एक लुटेरे को खदेड़ कर दूसरा लुटेरा आया था पर वह उसे ही तो लूट रहा था जिस पर कुछ था ...लुटी पिटी जनता को अब कुछ जन सुविधाएं भी थी ... जन विश्वास खो चुके और पूर्ण शोषक हो चुके क्षत्रीय राजाओं की मूंछें और उनके मंत्री पण्डित जी की शिखा और यज्ञोपवीत मुगलों ने बेरहमी से नोच ली थी ...अब लुटेरे बन कर आये मुगलों ने लूट कर भागने के बजाय यहीं पैर जमा लिए ...सत्ता जमाते हुए उन्होंने सरकार को स्वरुप दिया ...न्यायव्यवस्था कायम हुयी ...स्वास्थ सेवायें शुरू हुईं ...पुलिस अस्थ्त्व में आयी ...परिवहन के लिए सड़कें बनीं ...जमीनों के नक़्शे बने ...राज्य चलाने के लिए राजस्व वसूली की व्यवस्था हुयी ...जमींदारी व्यवस्था ने पैर जमाये ...मुगलों ने भारतीय मूल के राजाओं का सैनिक बन कर लड़ने वाले गरीब कुचले हुए विपन्न लोगों को पहली बार नागरिक सुविधाएं दीं . इससे मुगलों के विरुद्ध भारतीय मूल के राजाओं को सैनिक मिलना बंद हो गए ...अब संपन्न की हिफाजत विपन्न ने करना बंद कर दी थी ...क्षत्रीय राजाओं की शान और उनके पुरोहित बने पण्डितजीयों का ज्ञान मुगलों का गुलाम बन चुका था ....फिर पैर स्थाई जमते ही मुग़ल लुटेरे बादशाह बन बैठे और उन्होंने भी क्रूरता से शोषण जारी किया तो अंग्रेज आये . अंग्रेजों ने व्यापार का कल्याणकारी मुखौटा लगाया और वार किया ...अंग्रेज सत्ता की स्थापना के बाद अंग्रेजों ने भारतीय मूल के शेष या यों कहें कि अवशेष राजाओं की मूंछें , पंडितों की मुगलों से शेष बची शिखा तो उखाड़ ही ली साथ ही मुग़ल बादशाहों की और उनके साथी मुल्लों की दाढ़ी भी उखाड़ ली ...ठाकुर साहब की मूंछें , पंडितों की शिखा और मुगलों की दाढी अब अंग्रेजों के दरबार में कालीन बन कर बिछी थी ...पददलित ...भारतीय मूल के या मुग़ल राजाओं ने स्कूल नहीं खोले थे ...दूर दराज के आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनरी स्कूल खोले गए ... झाबुआ, बस्तर, जगदलपुर जैसी जगह अंगरेजी स्कूल और अस्पताल खुलने लगे ...गरीबों के बच्चे साक्षर हो रहे थे माध्यम वर्ग के बच्चे समझदार और उच्च वर्ग के बच्चे शिक्षित ...न्याय और प्रशासन की भाषा अंगरेजी हो चली ...सड़कें बनी ...आज के न्यायालयों /विधान सभाओं /संसद /विश्वविद्यालयों की इमारतें अंग्रेजों की बनवाई हैं ...रेलवे अंग्रेजों की बनवाई है ....हम तो अंग्रेजों की बनायी व्यवस्था पर अंग्रेजों को खदेड़ कर बस बैठ गए हैं ...न हमने व्यवस्था बनायी है न क़ानून ...लगभग 2800 केन्द्रीय कानूनों ( Central Act ) में 2635 अंग्रेजों के बनाए हुए हैं ... आज भी आपके स्कूलों से ईसाई स्कूलों की फीस कम और स्तर बहुत अच्छा है... क्यों ? ...मिशनरी स्कूल के प्रिंसपल का बच्चा मिशनरी स्कूल में पढता है पर सरकारी स्कूल में सरकारी कर्मचारियों के बच्चों का पढना अनिवार्य नहीं है ...भारत में चन्द्रगुप्त -चाणक्य ने जन सुविधाओं / न्याय की निश्चितता / लिखित क़ानून / जन शिक्षा के अभिनव प्रयोग किये थे पर बिन्दुसार का अतिसार उन्हें ले बीता ...आपने जब कुछ दिया ही नहीं और मैकोले ने उस शून्य को भरा तब आप मेकॉले को कोस कर क्या कहना चाहते हैं ? ....मेकॉले ने तुम्हारी व्यवस्था ...तुम्हारी न्यायपालिका , तुम्हारे क़ानून , तुम्हारी अदालतें हटा कर अपनी नहीं दी ...मैकॉले ने तुम्हारे स्कूल हटा कर अपनी शिक्षा पद्धति नहीं दी ...मैकॉले ने तुम्हारी दंड सहित /साक्ष्य अधिनियम /प्रक्रिया संहिता हटा कर अपनी नहीं स्थापित की मैकॉले ने तो जब कोइ व्यवस्था ही नहीं थी तब एक व्यवस्था की नीव डाली जिस पर आपने अपने आधुनिक भारत की इमारत बुलंद की हैं ...मैकॉले आपकी निरंतर बुलंद होती भारत की इमारत का नींव का पत्थर है ...नालायक संतानों की पहचान होती है कि वह खुद कुछ नहीं करते और कुछ करने वाले को पुरजोर कोसते हैं ... हम भारतीय मूल के लोगों ने या काबुल कंधार से आये मुगलों ने किया ही क्या है ? .... अव्यवस्था में मेकॉले व्यवस्था स्थापित कर गया ...हम पर आज भी मेकॉले से बेहतर कोई अन्य वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है ....ऐसे में हम अपने पुरखों की अकर्मण्यता को कोसें इससे बेहतर है मैकॉले को धन्यवाद दें ." ----- राजीव चतुर्वेदी
गाय तथा सूअर की चर्बी पर 1857 की क्रान्ति ही नहीं हुयी थी 2017 की भी क्रान्ति होगी
"मुसलमान गऊ मांस न खाएं पर गाय क्या खाये यह हिन्दू बताएं ?... क्या "गाय क्या खाये" इसकी कोई धार्मिक सामाजिक व्यवस्था है ?.... सुपोषित गायें गऊ वंश में अल्पसंख्यक हैं और कुपोषित बहुसंख्यक । जम्मू कश्मीर में या अन्य किसी मुस्लिम बहुल इलाके में अगर हिन्दूओं का कोई वर्ग सुअर का मांस खाये तो मुसलामानों को कैसा लगेगा ?...क्या इसे मुसलमान बर्दाश्त कर सकेंगे ?... तो फिर अमन की कोशिश में मुसलमान क्या मात्र इतना भी नहीं कर सकते कि गऊ मांस न खाएं ? यह अमन और सहअस्तित्व की सार्थक पहल होगी । क्या मुसलमान यह करेंगे ?... अगर "हाँ" तो सहअस्तित्व की संभावना है और अगर "नहीं " तो सहअस्तित्व अकेले हिंदुओं की ही राष्ट्रीय जिम्मेदारी नहीं । याद रहे; अघुलनशील अस्मिता राष्ट्र की एकता में बाधा है और गाय तथा सूअर की चर्बी पर 1857 की क्रान्ति ही नहीं हुयी थी 2017 की भी क्रान्ति होगी ।"
---- राजीव चतुर्वेदी
---- राजीव चतुर्वेदी
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