Tuesday, 12 January 2016

राजीव चतुर्वेदी ( 3)

गुरुओं को कृतज्ञभाव से प्रणाम !! ...पर मत भूलो समाज में गुरुघंटाल भी हैं

" !! गुरु पूर्णिमा पर गुरुओं को कृतज्ञभाव से प्रणाम !! ...पर मत भूलो समाज में गुरुघंटाल भी हैं ...शिक्षा के दलाल भी हैं ...गुरुओं को युगों से आदर दे रहे इस देश में शिक्षा और कोचिंग क्लास की दुकाने खुल गयी हैं जहां न जाने कितने प्रतिभासंपन्न किन्तु गरीब एकलव्यों के अंगूठे कटे हुए टंगे हैं --- देखो तो ! ...गुरु पूर्णिमा पर गुरु दक्षिणा का व्यापक कार्यक्रम चलाने वाले सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रणेता और अभिनेता अपनी सक्रियता के बीच इस सवाल का जवाब भी दे दें कि शिक्षा के बाजारीकरण के लिए अटल सरकार ने दरवाजे क्यों खोले थे ? ...अटल सरकार में क्यों शिक्षा के बाजारीकरण के लिए "अनिल अम्बानी -कुमारमंगलम बिरला समिति" का गठन किया था ? ...सभी जानते हैं की अनिल अम्बानी या कुमार मंगलम बिरला का शिक्षा से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है पर व्यापार की दूरदृष्टि या यों कहें कि गिद्ध दृष्टि तो है ..."सामान शिक्षा" का नारा आज़ादी के बुजुर्ग हो जाने के बाद भी मुंह बाए खड़ा है ...ग्रामीण स्कूलों और शहर के अभिजात्य स्कूलों में शिक्षा के स्तर के बीच असमानता की गहरी खाई है ...ऐसे में शिक्षा का मानकीकरण संभव ही नहीं है . भारत में हर युग में गुरुओं को बहुत सम्मान दिया गया ...क्या गुरूजी की जवाबदेही कोई नहीं ?...भारत के कोनो में ज्ञान /शिक्षा का अन्धकार क्यों है ? ...क्यों आज़ादी के इतने साल बाद भी मिशनरी स्कूल हमारे स्कूलों पर गुणवत्ता में भारी हैं ? ... गुरु पूर्णिमा पर आपको गुरु की सिद्ध दृष्टि मिले, गिद्ध दृष्टि न मिले .--- शुभकामना !" ----- राजीव चतुर्वेदी 

"इल्म बड़ी दौलत है
तू भी स्कूल खोल
इल्म पढ़ा
फीस लगा
दौलत कमा
फीस ही फीस
पढाई के बीस
बस के तीस
यूनिफार्म के चालीस
खेलो के अलग
वैरायटी प्रोग्राम के अलग
पिकनिक के अलग
लोगो के चीखने पर ना जा
दौलत कमा
उससे और स्कूल खोल
उनसे और दौलत कमा
कमाए जा, कमाए जा
अभी तो तू जवान ह..यह सिलसिला जारी है
जब तक गंगा-जमाना है
पढाई बड़ी अच्छी है
पढ़
बही खता पढ़
टेलीफोन डायरेक्टरी पढ़
बैंक अस्सेस्मेंट पढ़
ज़रूरते-रिश्तो के इश्तिहार पढ़
और कुछ मत पढ़
मीर और ग़ालिब को मत पढ़
इक़बाल और फैज़ को मत पढ़
इब्ने इंशा को मत पढ़
वर्ना तेरा बेडा पर न होगा
और हम में से कोई
नताएज़ * का ज़िम्मेदार न होगा।
"
- इब्ने इंशा
( पाकिस्तान के मशहूर लेखक और व्यंगकार )
*नताएज़ = नतीजे का बहुवचन / परिणाम


दीनदयाल उपाध्याय और भाजपा की यात्रा कथा



(आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयन्ती है ...वह राजनीति के दार्शनिक संत थे ..."एकात्म मानववाद " के प्रणेता थे चुनावी नेता नहीं ...उनका जन्म मथुरा में फराह के पास नगला चंद्रभान में हुआ था . 1968 में रहस्यमय परिस्थितियों में वह मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर रेल के डिब्बे में मृत मिले थे ...विडंबना यह कि उनकी हत्या का मुकदमा जौनपुर के तत्कालीन जनसंघ के सांसद राजा यादवेंद्र दत्त मिश्रा पर चला था ....गाँधी की हत्या को मौन और मुखर समर्थन देने वाली शक्तियों ने ही दीनदयाल उपाध्याय की हत्या करवा दी थी ) 

" भाजपा की स्थापना 6 अप्रेल 1980 को एक राजनीतिक विवशता में हुयी थी . यह संक्रमणग्रस्त भारतीय जनसंघ का ही नया संस्करण था . भारतीय जनसंघ का चुनाव चिन्ह था दीपक और नारा था --
हर हाथ को काम , हर खेत को पानी ,
घर घर में दीपक , जनसंघ की निशानी .
"


श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय के तत्कालीन नेतृत्व में पार्टी के विचार विकसित हुए किन्तु वोट विकसित नहीं हुए ...बलराज मधोक ने प्रखर राष्ट्रवाद का परचम लहराया . उस दौर में लड़ाई कोंग्रेस को केन्द्रीय सत्ता से प्रतिस्थापित करने की नहीं थी . उस दौर में लड़ाई केवल अपने आपको प्रखर विपक्ष सिद्ध करने की थी और इस प्रतियोगिता में राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव के सोसलिस्ट अंतर्द्वंद्व संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी (संसोपा ) और प्रजा सोसलिस्ट पार्टी (प्रसोपा ) के रूप में थे वही अपने विरोध को विभाजित करने के लिए कोंग्रेस ने वामपंथियों को प्रायोजित कर दिया था (बिलकुल वैसे ही जैसे इस बार केजरीवाल की "आप" को . 1968 में कोंग्रेस के गर्भ से चौधरी चरण सिंह का उदय हुआ और राजनीती के लाल केशरिया झंडों में हरी झंडियाँ भी दिखने लगीं ...कोंग्रेस ने भी कुटिलता से स्वेत क्रान्ति का नारा दिया ...किन्तु विपक्ष विभाजित था. अब तक श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय की हत्या हो चुकी थी ... शेष बचे शीर्ष नेता बलराज मधोक को अटल बिहारी वाजपेयी हाशिये पर धकेल चुके थे (बिलकुल वैसे ही जैसे नरेंद्र मोदी ने अडवानी को धकेला ) अटल जी शीर्ष नेता थे और उनके लेफ्टीनेंट /सचिव थे लालकृष्ण अडवानी जो उस समय पार्टी मुखपत्र पांचजन्य / ओर्गनाइज़र के सम्पादक भी थे . साथ में राजस्थान से भैरों सिंह शेखावत और संघ परम्परा के नानाजी देशमुख भी बड़े सेनापतियों में थे .इनके नेतृत्व में करपात्री जी की अगुआई में "गो वध बंदी आन्दोलन " उभरा . आन्दोलन जितना सशक्त था उतनी ही सख्ती से इसे इंद्रा गाँधी ने कुचला भी ...दिल्ली में इसके प्रदर्शन में कुछ सौ लोग दिल्ली में पुलिस की गोली से मारे गए थे और इंद्रा गांधी की छवि हिन्दू विरोधी की हो गयी किन्तु 1971 में बांग्लादेश युद्ध के बाद भाजपा के हाथ से उसका राष्ट्रवाद का मुद्दा छिन कर कोंग्रेस या यों कहें की इंद्रा जी के हाथ में चला गया था . इस लोकप्रियता की ऊंचाई पर पंहुच कर कोंग्रेस आत्ममुग्ध हो गयी और दोनों हाथ से लूट होने लगी ...भ्रष्टाचार के नए सोपान लिखे गए . इसके विरुद्ध भारतीय जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने जबरदस्त काम किया ...उधर संसद में अटल बिहारी बाजपेयी विपक्ष की प्रखर आवाज़ बन कर उभरे तो जनसंघ के अनुसांगिक संगठन विद्यार्थी परिषद् ने पूरे देश के छात्रों में संगठन खड़े कर लिए अब संगठन के हिसाब से कोंग्रेस के बाद सबसे बड़ी ताकत जनसंघ हो चूका था ...1974 में गुजरात छात्र आन्दोलन से गुजरात की सरकार पलट गयी . यह आन्दोलन विद्यार्थी परिषद् का था जिसमें नरेंद्र मोदी आगे थे ...उधर बिहार में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में जेपी मूवमेंट कोंग्रेस की केन्द्रीय सरकार को उखड फेंकने के लिए चल पड़ा था . जेपी मूवमेंट में विद्यार्थी परिषद् की अग्रणी हिस्सेदारी थी जिसमें गोविन्दाचार्य प्रमुख थे और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष अरुण जेटली भी अग्रणी थे . 1975 में सोशलिस्ट नेता राजनारायण की चुनाव याचिका में इंद्रा गांधी हार गयीं किन्तु अपना पद बचाने के लिए उन्होंने 25 जून '75 को देश में आपातकाल लागू कर दिया ....सभी विपक्षी नेता जेल में थे जिनमें जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर्वाधिक नेता थे . 1977 में लोकसभा चुनाव में कोंग्रेस या यों कहें की इंद्रा गांधी के विरुद्ध अभूतपूर्व ध्रुवीकरण हुआ और तमाम विपक्षी दल अपना विलय कर जनता पार्टी बने . जनता पार्टी का सबसे बड़ा घटक भारतीय जनसंघ था . 1977 में जनता पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली ...चंद्रशेखर जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री . मोरारजी देसाई की इस सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे और लाल कृष्ण अडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री थे . किन्तु अंतरविरोधों के कारण यह सरकार डगमगा गयी और चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने ...प्रयोग असफल हो चुका था ...जनता पार्टी फिर आपने अपने धडों में बाँट गयी ...जनता पार्टी के भारतीय जनसंघ घटक ने पुनः नयी पार्टी का पंजीकरण कराया और अब 6 अप्रेल'1980 से इसका परिवर्तित नया नाम हुआ " भारतीय जनता पार्टी " और चुनाव चिन्ह मिला "कमल" ....और इसके बाद का घटना चक्र तात्कालिक इतिहास है और इतिहास साक्षी है कि भाजपा ने अभी तक किसी आन्दोलन को अंजाम तक नहीं पंहुचाया है ...सांकेतिक किया और सरकार बना कर चुप बैठ गए ...सांकेतिक कार सेवा ...सांकेतिक राष्ट्रवाद ....अभी तक तो यह राजनीती के अथक किन्तु कत्थक नृत्य ही कर रहे हैं ...अब अंजाम तक 
पंहुचना होगा . " ----- राजीव चतुर्वेदी



अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा क़त्ल से खुश होता है तो उसके मुंह पर थू

"मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणी भी ईश्वरीय कृति हैं ... बल्कि अवधारणा तो यही है कि मानव ईश्वरीय कृतियों में अंतिम कृति है ... यह सनातन अवधारणा है , इस्लाम की भी है, ईसाइयों की भी ,बौद्धों की भी ,यहूदियों की भी ,पारसीयों की भी (मार्क्सवादी मजहब को मानने वाले ही इस अवधारणा से असहमत हैं ) ... फिर ईश्वर की एक कृति को दूसरी कृति नष्ट करे यह अधिकार कहाँ से मिल गया ? ...ईश्वर /ईसा /अल्लाह तो नहीं दे सकते ? ...भला कौन पिता अपनी कमजोर संतति को मारने का हक़ अपनी ताकतवर संतति को देगा ? ... निश्चय ही पशु बलि / कुर्बानी ताकतवर संतति मानव के द्वारा अपने अधिकार के विस्तार ही नहीं पशुओं के प्रकृति पर हक़ पर अतिक्रमण की कहानी है ... पहले राजा नरबलि देते थे फिर हम कुछ और सभ्य हुए तो कानूनन इस पर रोक लगी ...आश्चर्य इस बात पर है कि ईश्वर /अल्लाह /ईसा केवल शाकाहारी सीधे अहिंसक जानवरों की बलि पर ही खुश होते हैं ? ... अरे भाई अपने पालतू या सड़क के फालतू कुत्ते की बलि या कुर्बानी क्यों नहीं करते ? ...शेर से ले कर सांप तक किसी हिंसक प्राणी की कुर्बानी क्यों नहीं करते ? ... शाकाहारी प्राणीयों का गोस्त ही क्यों खाते हो ? 
मानव ने मजहब बनाए और अलग अलग भयावह रूपों में यमराज की कल्पना कर ली पर पशुओं की भी तो सुनो ...नेपाल के काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर के इलाके के भैंसे / बकरे बताते होंगे यमराज त्रिपुण्ड लगाता है ...कामाख्या मंदिर- गौहाटी के इलाके के बकरे /भैंसे बताते होंगे कि यमदूत तिलक लगाता है और इसी तरह बकरीद पर गाय /भैंस /ऊँट /भेड़ /बकरे आपस में बताते होंगे कि यमराज गोलटोपी पहन कर आता है और मजहब से मुसलमान होता है ...कुल मिला कर यमदूत की शक्ल में साम्प्रदायिक आरक्षण है . बहरहाल जितना गोश्त बकरीद पर खाया जाता है उतना गोश्त होली पर भी खाया जाता है .
क़त्ल तो क़त्ल है फिर चाहे मानव का हो या पशु का ...क़त्ल को हर हाल में केवल आत्म रक्षा के लिए ही जायज ठहराया जा सकता है ...मानव पर संसद थी ..विधान सभा थी ...एक जुट करती भाषा थी तो पहले अपनी बलि प्रतिबंधित करने के क़ानून बनाए फिर ताकतवर मानव इकाइयों ने कमजोर मानव इकाइयों का शोषण किया प्रकृति के शोषण किया फिर अपना पोषण करने वाले जल जंगल जमीन का शोषण किया ...फिर अब बारी शाकाहारी प्राणियों की थी तो उनकी बलि /कुर्बानी होने लगी . 
ईश्वर /अल्लाह /ईसा अगर है तो कभी अपनी ही निर्दोष कृति के क़त्ल पर खुश नहीं हो सकता ...और अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा निर्दोषों के क़त्ल पर खुश होता है तो मैं उसकी निंदा करता हूँ ...मेरा ईश्वर कातिलों के साथ नहीं खड़ा हो सकता ...मेरा ईश्वर क़त्ल से खुश नहीं हो सकता ...और अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा क़त्ल से खुश होता है तो उसके मुंह पर थू ." ----- राजीव चतुर्वेदी

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