Friday 29 August 2014

असअद भोपाली

2.
कुछ भी हो वो अब दिल से जुदा हो नहीं सकते
हम मुजरिम-ए-तौहीन-ए-वफ़ा हो नहीं सकते

ऐ मौज-ए-हवादिस तुझे मालूम नहीं क्या
हम अहल-ए-मोहब्बत हैं फ़ना हो नहीं सकते

इतना तो बता जाओ ख़फ़ा होने से पहले
वो क्या करें जो तुम से ख़फ़ा हो नहीं सकते

इक आप का दर है मेरी दुनिया-ए-अक़ीदत
ये सजदे कहीं और अदा हो नहीं सकते

अहबाब पे दीवाने 'असद' कैसा भरोसा
ये ज़हर भरे घूँट रवा हो नहीं सकते


1,
गिराँ गुज़रने लगा दौर-ए-इंतिज़ार मुझे
ज़रा थपक के सुला दे ख़याल-ए-यार मुझे

न आया ग़म भी मोहब्बत में साज़-गार मुझे
वो ख़ुद तड़प गए देखा जो बे-क़रार मुझे

निगाह-ए-शर्मगीं चुपके से ले उड़ी मुझ को
पुकारता ही रहा कोई बार बार मुझे

निगाह-ए-मस्त ये मेयार-ए-बे-ख़ुदी क्या है
ज़माने वाले समझते हैं होशियार मुझे

बजा है तर्क-ए-तअल्लुक़ का मशवरा लेकिन
न इख़्तियार उन्हें है न इख़्तियार मुझे

बहार और ब-क़ैद-ए-ख़िज़ाँ है नंग मुझे
अगर मिले तो मिले मुस्तक़िल बहार मुझे

No comments:

Post a Comment