Friday, 27 September 2013

मुजफ्फर हनफी



1.

बेसबब रूठ के जाने के लिए आए थे 
आप तो हमको मनाने के लिए आए थे 


ये जो कुछ लोग खमीदा हैं कमानों की तरह
आसमानों को झुकाने के लिए आए थे

हमको मालूम था दरिया में नहीं है पानी 
सर को नेज़े पे चढ़ाने के लिए आए थे 

इखतिलाफ़ों को अक़ीदे का नया नाम न दो 
तुम ये दीवार गिराने के लिए आए थे 

है कोई सिम्त कि बरसाए न हम पर पत्थर 
हम यहाँ फूल खिलाने के लिए आए थे 

हाथ की बर्फ़ न पिघले तो मुज़फ़्फ़र क्या हो 
वो मेरी आग चुराने के लिए आए थे 


2.
ये बात खबर में आ गई है 
ताक़त मेरे पर में आ गई है 

आवारा परिन्दों को मुबारक 
हरियाली शजर में आ गई है

इक मोहिनी शक्ल झिलमिलाती 
फिर दीदा ए तर में आ गई है 

शोहरत के लिए मुआफ़ करना 
कुछ धूल सफ़र में आ गई है 

हम और न कर सकेंगे बरदाश्त 
दीवानगी सर में आ गई है

रातों को सिसकने वाली शबनम 
सूरज की नज़र में आ गई है 

अब आग से कुछ नहीं है महफ़ूज़ 
हमसाए के घर में आ गई है 


3.
पड़ोसी तुम्हारी नज़र में भी हैं 
यही मशविरे उनके घर में भी हैं 

मकीनों की फ़रियाद जाली सही
मगर ज़ख्म दीवार-व-दर में भी हैं 

बगूले की मसनद पे बैठे हैं हम 
सफ़र में नहीं हैं सफ़र में भी हैं 

तड़पने से कोई नहीं रोकता 
शिकंजे मेरे बाल-व-पर में भी हैं

तेरे बीज बोने से क्या फ़ायदा 
समर क्या किसी इक शजर में भी हैं

हमें क्या खबर थी कि शायर हैं वो 
मुज़फ़्फ़र मियाँ इस हुनर में भी हैं

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