Thursday 12 September 2013

- ' अर्श मलसियानी '(16 )

(1)
जिन्दगी कशमकशे-इश्क के आगाज का नाम,
मौत अंजाम है इसी दर्द के अफसाने का।
 कशमकश = (i) खींचातानी, आपाधापी (ii) असमंजस, संकोच, दुविधा, पसोपेश (iii) संघर्ष, लड़ाई (iv) दौड़-धूप/// आगाज = आरम्भ, शुरूआत
(2)
जिस गम से दिल को राहत हो, उस गम का मुदावा क्या मानी?
जब फितरत तूफानी ठहरी, साहिल की तमन्ना क्या मानी?
मुदावा = दवा, इलाज //. फितरत = आदत, स्वभाव 
(3)
तसन्नो की फुसूंकारी का कुछ ऐसा असर देखा,
कि यह दुनिया मुझे दुनियानुमां मालूम होती हैं।
 .तसन्नो= (i) बनावट, कृत्रिमता (ii) दिखावा, जाहिरदारी (iii) चापलूसी, चाटुकारिता // 
. फुसूंकारी =जादूगरी, माया, तिलिस्म 
(4)
न आने दिया राह पर रहबरों ने,
किये लाख मंजिल ने हमको इशारे।

(5)
किसका कुर्ब,कहाँ की दूरी, अपने आप में गाफिल हैं,
राज अगर पाने का पूछो, खो जाना ही पाना है।
 .कुर्ब = समीपता, नजदीकी, निकटता 
गाफिल = (i) संज्ञाहीन, बेहोश (ii) असावधान, बेखबर (iii) आलसी, काहिल
(6)
यूँ मुतमइन1 आये हैं खाकर जिगर पै चोट,
जैसे वहाँ गये थे इसी मुद्दआ के साथ।
1.मुतमइन - (i) संतुष्ट (ii) आनन्दपूर्वक, खुशहाल
(7)
रहबर या तो रहजन निकले या हैं अपने आप में गुम,
काफले वाले किससे पूछें किस मंजिल तक जाना है।
 2.रहजन - डाकू, लुटेरा 
(8)
वफा पर मिटने वाले जान की परवा नहीं करते,
वह इस बाजार में सूदो-जियो3 देखा नहीं करते।
3.सूदो-जियो - लाभ-हानि 
(9)
वह मर्द नहीं जो डर जाये, माहौल के खूनी खंजर से,
उस हाल में जीना लाजिम है जिस हाल में जीना मुश्किल है।

(10)
गुल भी हैं गुलिस्ताँ भी है मौजूद,
इक फकत आशियाँ नहीं मिलता।
(11)
अपनी निगाहे-शोख़ से छुपिये तो जानिए
महफ़िल में हमसे आपने पर्दा किया तो क्या?

सोचा तो इसमें लाग शिकायत की थी ज़रूर
दर पर किसी ने शुक्र का सज़्दा किया तो क्या?

ऐ शैख़ पी रहा है तो ख़ुश हो के पी इसे
इक नागवार शै को गवारा किया तो क्या?
(12) 
खयाले-तामीर के असीरों,करो न तखरीब की बुराई,
बगौर देखो तो दुश्मनी के करीब ही दोस्ती मिलेगी।
 तखरीब - (i) तामीर का उल्टा, बरबादी, विनाश, विध्वंस (ii) बिगाड़, खराबी
(13)
खुश्क बातों में कहां ऐ शैख कैफे-जिन्दगी,
वह तो पीकर ही मिलेगा जो मजा पीने में है
.शैख - पीर, गुरू, धर्माचार्य
(14)
आने दो इल्तिफात में कुछ और भी कमी,
मानूस हो रहे हैं तुम्हारी जफा से हम।
इल्तिफात - (i) प्यार, लगाव (ii) कृपा, दया, मेहरबानी (iii) तवज्जुह /// मानूस - आसक्त, मुहब्बत करने वाला /// .जफा - सितम, अत्याचार
(15 )
'अर्श' पहले यह शिकायत थी खफा होता है वह,
अब यह शिकवा है कि वह जालिम खफा होता नहीं। 

(16)
इस इन्तिहाए-तर्के-मुहब्बत के बावजूद,
हमने लिया है, नाम तुम्हारा कभी-कभी।
.इन्तिहाए-तर्के-मुहब्बत - मुहब्बत का बिल्कुल परित्याग

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